क़िस्त 81 : कसरा-ए-इजाफ़त पर अतिरिक्त बातें[ भाग-2]
अतिरिक्त जानकारी के लिए आप क़िस्त 70--80--105 भी देख सकते हैं
पिछली क़िस्त 80 में Y Type ke इज़ाफ़ती अल्फ़ाज़ की चर्चा की थी ।यानी
[Y] लफ़्ज़ A --का आखिरी हर्फ़ पर -आ [ अलिफ़ ]- या -ऊ [ वाव ] का स्वर जुड़ा हो
आज हम [Z] लफ़्ज़ A ---का आखिरी हर्फ़ पर -ई [ या] का स्वर जुड़ा हो जैसे दीवानगी-ए-शौक़. तीरगी-ए-वहम-
अफ़शानी-ए-गुफ़्तार --महरूमी-ए-जावेद---तरयाकी-ए-कदीम-- तिश्नगीए-शौक़---आदि ।
पर इज़ाफ़त की चर्चा करेंगे।
ऐसे केस में -बड़ी ई- वाले हर्फ़ को कसरा लगा कर छोटी इ करेंगे फ़िर -ए- लगा कर इज़ाफ़त बनाएँगे ।
ग़ालिब का एक शे’र है -बह्र है 2122--1122--1122--22 [ यानी बह्र-ए-रमल मुसम्म्न मख़्बून मक़्तूअ’]
-वाए-दीवानगी-ए-शौक़ कि हरदम मुझको
आप जाना उधर और आप ही हैरां होना
यानी तक़्तीअ’ में यहाँ -गी [2] - को -गि [1] - करेंगे और फिर--ए- जोड़ेंगे
अब इस शे’र की तक़्तीअ’ भी कर के देख लेते हैं
2 1 2 2/ 1 1 2 2 / 1 1 2 2 / 2 2
वाए-दीवा/ न गि-ए-शौ/क़ कि हरदम /मुझको
2 1 2 2 / 1 1 2 2 / 1 1 2 2 / 2 2
आप जाना /उध र और आ/प ही हैरां / होना
उधर + और+ आप = उ ध रौ रा +-प [ 1 1 2 2 ] + 1
[यानी अलिफ़ क वस्ल उधर के आखिरी हर्फ़ -र- पर और और के बाद जो आप का अलिफ़ ]
बज़ाहिर इस शे’र में -ए- का वज़न -2-ठहरता है
अब एक शे;र और लेते हैं ग़ालिब का ही’ है--इसकी भी बह्र वही है
न बँधे तिश्नगी-ए-शौक़ के मज़मूँ ग़ालिब
गरचे दिल खोल कर दर्या को भी साहिल बाँधा
इसकी भी तक़्तीअ’ कर के देख लेते हैं
1 1 2 2 / 1 1 2 2 / 1 1 2 2 / 2 2
न बँधे तिश/ न गि -ए-शौ / क़ के मज़मूँ /ग़ालिब [ यहाँ भी -तिश्नगी [ 2 1 2 ]-को पहले तिशनगि - 2 1 1 -करेंगे फिर इज़ाफ़त का -ए-लगाएंगे
2 1 2 2 / 1 1 2 2 / 1 1 2 2 / 2 2
गरच: दिल खो /ल के दर्या /को भी साहिल /बाँधा
बज़ाहिर यहाँ भी -ए- का वज़न -2-लिया गया है
अच्छा अब आप के मन में एक सवाल उठता होगा कि मिसरा उला के पहले मुक़ाम पर तो 2122-- का वज़न आना चाहिए -और हमने 1122 का वज़न दिखा कर तक़्तीअ कर दी।
जी बिलकुल सही --आप का सवाल 100% दुरुस्त है
जी। इस बह्र में [ और बह्र-ए-ख़फ़ीफ़ के मख़्बून मुसद्दस --में भी \ पहले मुक़ाम [जिसे सदर/ इब्तिदा का मुक़ाम कहते हैं ] में First वाले -2- के मुक़ाम पर -1- लाया जा सकता है
अरूज़ में इसकी इजाज़त है । याद करें ग़ालिब का वह मशहूर शे’र ----दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है --[ 2122---1212---22 ] में दिल-ए-नादाँ का वज़न = 1 1 2 2 है । न कि 1 2 2 2
या 2 1 2 2
अब चलते चलते एक आख़िरी शे’र भी देख लेते हैं ग़ालिब का ही है ।
ताज़ा नहीं है नश्शा फ़िक्र-ए-सुखन मुझे
तरयाक़ी-ए-कदीम हूँ दूद-ए-चिराग़ का
[ दूद-ए-चिराग़ = चिराग़ का धुआँ ]
इस शे’र की बह्र है ---221-2121--1221---212 [ बह्र-ए-मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मक्फ़ूफ़ महज़ूफ़ ]
अब इसकी भी तक़्तीअ’ कर के देखते हैं } मिसरा सानी की तक़्तीअ’ मैं कर देता हूँ । मिसरा उला की आप कर लें--आप का अत्म विश्वास बढेगा।
221--- /2121--- /1221-- /212
तरयाक़ि / -ए-कदीम / हूँ दूद-ए-चि/ राग़ का
वही बात तरयाक़ी को पहले -तरयाक़ि- किया फिर इज़ाफ़त -ए- लगाया
एक बात और
दूद-ए- --को -दूदे [2 2 ] -- के वज़न पर लिया जो जायज भी है । कसरा इज़ाफ़त -ए- दूद के आख़िरी हर्फ़ को मुतस्सिर [ प्रभावित ] कर दिया और यहाँ बह्र और वज़न की
Demand खींच कर पढ़ने की है सो -द- को खींच कर पढ़ा।
अत: हम कह सकते है कि इज़ाफ़त -ए- का वज़न बह्र और रुक्न की माँग के अनुसार कभी -1- कभी -2- होता रहता है
चूँकि हिंदी गज़लों में अब कम ही इज़ाफ़त का प्रयोग होता है अत: इसके बारे में आप को बहुत परेशान होने की ज़रूरत नहीं है।
वह तो बात निकली सो लिख दिया कि अगर कभी आप को कदीम [ पुराने ]शायरों के कलाम मसलन ग़ालिब--मीर--ज़ौक़--इक़बाल को समझने और तक़्तीअ’ करने में सुविधा हो ।
यह चर्चा यही समाप्त करते हैं।
[ नोट -इस मंच के तमाम असातिज़ा से दस्तबस्ता गुज़ारिश है कि अगर कुछ ग़लतबयानी हो गई हो तो ज़रूर निशानदिही फ़रमाएँ कि आइन्दा मैं खुद को दुरुस्त कर सकूं~।
-आनन्द.पाठक-
Mb 8800927181
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दिनांक 17-अगस्त-21