क़िस्त 106 : 221---1222 // 221---1222 का सही नाम क्या होगा ?
[ नोट :यह लेख उनके लिए जो अरूज़ से ज़ौक़-ओ-शौक़ फ़र्माते है या अतिरिक्त जानकारी रखना चाहते है। यहाँ एक बात स्पष्ट कर दूँ बिना इस जानकारी के भी या इस बह्र का नाम जाने बिना भी आप इस बह्र में शायरी कर सकते है और लोग करते भी हैं--पढ़ कर परेशान होने की आवश्यकता नहीं है]
ख़ैर ।
आप इस बह्र से अवश्य परिचित होंगे । आप ने कभी न कभी इस बह्र में शायरी भी की होगी या ग़ज़ल कही होगी। बड़ी ही दिलकश लोकप्रिय मानूस बह्र हैऔर अमूमन सभी शायरों ने इस बह्र में ग़ज़लें कहीं है। इसी बह्र में इक़बाल की ग़ज़ल के चन्द अश’आर यहाँ लगा रहे हैं-
फिर बाद-ए-बहार आई इक़बाल ग़ज़लख़्वाँ हो
गुंचा है अगर, गुलहो, गुल है तो गुलिस्ताँ हो ।
तू खाक की मुठ्ठी है ,अज़जा की हरारत से
बरहम हो, परीशाँ हो, वुसअत में बयाबाँ हो
तू जिन्स-ए-मुहब्बत है कीमत है गरां तेरी
कम-माया है सौदागर, इस देश में अरजाँ हो ।
[1] कुछ लोग इस बह्र का नाम - हज़ज मुसम्मन अख़रब सालिम अख़रब सालिम --या- सिर्फ़ हज़ज मुसम्मन अख़रब सालिम या हज़ज मुसम्मन अख़रब भी कहते है।
[2] जब कि कुछ लोग इस बह्र का नाम --हज़ज मुसम्मन अख़रब मक्फ़ूफ़ मक्फ़ूफ़ मुख़्न्निक सालिम अल आखिर-- बताते है॥
सवाल यह है कि --तो फिर इसका सही नाम क्या होगा? आज इस लेख में इसी पर विचार करेंगे।
यह बह्र बनती कैसे है ?
आप इस बह्र से तो अवश्य परिचित होंगे
--A--------B-------C---------D
1222----1222----1222-----1222
यानी
मफ़ाईलुन----मफ़ाईलुन----मफ़ाईलुन--- मफ़ाईलुन
जी सही पकड़ा आप ने---यह बह्र-ए-हज़ज मुसम्मन सालिम -- है
अब मुक़ाम [-A-} जो शे’र में सदर/इब्तिदा का मुक़ाम है पर एक ज़िहाफ़ --खर्ब - लगाते है और मुक़ाम [ -B- ] --[ -C- ] जिसे शे’र में हस्व का मुक़ाम कहते है पर -कफ़- का ज़िहाफ़ लगाते है देखते हैं क्या होता है।
1222+ ख़र्ब = 221 [ अख़रब] = मफ़ऊलु यानी --लु-[1] मुतहर्रिक है
1222+ कफ़ = 1221 [मक्फ़ूफ़] = मफ़ाईलु यानी --लु-[1] मुतहर्रिक है
[ यह ज़िहाफ़ात सालिम रुक्न पर कैसे अमल करते है --इसके विस्तार में जाने की ज़रूरत नहीं --विषय दुरूह हो सकता है] बस आप इसे जान लीजिए या मान लीजिए ।
तो क्या बरामद होगा ?
221---1221---1221----1222
और नाम होगा -- बह्र-ए-हज़ज अख़रब मक्फ़ूफ़ मक्फ़ूफ़ सालिम अल आख़िर । और आप लोगों ने इस बह्र मे अवश्य ग़ज़ल कही होगी।
अच्छा अब इस पर ’तख़नीक़ का अमल करते है देखते हैं क्या होता है?[ तख़नीक़ का अमल आप ज़रूर जानते होंगे । मैने अपने ब्लाग में इस पर विस्तार से चर्चा की है। फिर भी संक्षेप में बता दूँ---जब दो मुज़ाहिफ़ रुक्न [ ज़िहाफ़शुदा रुक्न] आमने-सामने हों और तीन-मुतहर्रिक हर्फ़ लगातार एक साथ आ जाए तो बीच वाला मुतहर्रिक हर्फ़ --साकिन हो जाता है]
-1221---1221--- यानी [B] and [C] पर अमल कर के देखते है । [ B ] का आख़िरी -1- [ लु-मुतहर्रिक और [C] का मुफ़ा [12] [ मींम और फ़े दोनों मुतहर्रिक] यानी तीन मुतहर्रिक [ लु--मीम--फ़े ] एक साथ लगातार आ रहा है तो बीच वाला --मींम--अब [साकिन ] हो कर -लु- [ मुतहर्रिक] के साथ मिल कर --सबब [ सबब-ए-ख़फ़ीफ़=2] बनाएगा
तब हस्व वाला पार्ट 1221---1221 = 1222-- 221 बन जाएगा
ध्यान देने की बात यह है कि यह --1222- तखनीक़ के अमल से बना है यह सालिम 1222 वाला 1222 नहीं है
उसी प्रकार 221 बचा हुआ पार्ट है और यह अख़रब वाला 221 नही है।
यानी अब समग्र रूप से देखें तो
--A----B-----C------D
221--1222---221----1222
A [ सदर/इब्तिदा वाला ] मुज़ाहिफ़ रुक्न -- अख़रब है
B [ हस्व वाला ]मुज़ाहिफ़ रुक्न---- मक्फ़ूफ़ है
C [ हस्व वाला] मुज़ाहिफ़ रुक्न ---- मक्फ़ूफ़ मुख़नीक़ है
D [ अरूज़/ज़र्ब वाला] तो सालिम रुक 1222 है ही ---इस पर कोई रद-ओ-अमल नहीं किया गया अभी तक।
अत: 221---1222 // 221---1222 का सही नाम --हज़ज मुसम्मन अख़रब मक्फ़ूफ़ मक्फ़ूफ़ मुख़्न्निक सालिम अल आखिर-- होगा जो अरूज़ के क़ायदे क़ानून से बना है
बिना अरूज़ की नियमों की खिलाफ़वर्ज़ी किए हुए]
तो सवाल यह है कि --हज़ज मुसम्मन अख़रब सालिम अख़रब सालिम --यह नाम सही क्यों नही हो सकता ?
इसलिए सही नहीं हो सकता कि ज़िहाफ़ -ख़र्ब--्केवल - सदर/इब्तिदा के मुक़ाम के लिए ख़ास है और वह --हस्व के मुक़ाम पर नही लाया जा सकता --हस्व के मुक़ाम पे लाने से अरूज़ के क़ायदे की खिलाफ़वर्जी होगी।
चलते चलते एक बात और--
यह बह्र --साथ साथ बह्र-ए-शिकस्ता भी है।
[ नोट -आप लोगों से अनुरोध है कि अगर कहीं ग़लत बयानी हो गई हो तो निशानदिही फ़र्मा दें कि मैं आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सकूं~।
सादर
-आनन्द.पाठक-