Tuesday, November 12, 2024

उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 110 : बह्र 212--212--212--212 की एक मुज़ाहिफ़ बह्र

 किस्त 110  :  बह्र 212--212--212--212 की एक  मुज़ाहिफ़ बह्र पर चर्चा 

क्रमांक 109 से आगे-----


 पिछली क़िस्तों में हमने देखा था कि कैसे  बह्र-ए-मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम 

122---122---122---122 पर  ज़िहाफ़ और तख़्नीक के अमल से 

21--121---121--122 वज़न बरामद किया जा सकता है या फिर इससे

22--22--22--22  या 22--22--22--22--// 22--22--22--22 वज़न  बरामद किया जा सकता है 

और यह बह्र-ए-मीर का वज़न नहीं है । अगरचे मीर की बहर बह्र-ए-मुतक़ारिब से ही बनती है

आज यही तमाम वज़न बह्र-ए-मुतदारिक मुसम्मन सालिम से भी ज़िहाफ़ और तस्कीन ए औसत  के अमल से हू-ब-हू  same to same वज़न बरामद किया  जा सकता है ।

देखते हैं कैसे ?

यह बह्र तो आप पहचानते  होंगे और जानते भी होंगे।

[क]   212---212---212---212  जी हाँ आप सही हैं । बह्र-ए-मुतदारिक मुसम्मन सालिम।

अब इस पर एक ज़िहाफ़ --ख़ब्न  --लगा कर देखते है ।

212+ ख़ब्न    = मुज़ाहिफ़ मख़्बून  112 

 चूंकि खब्न एक आम ज़िहाफ़ है अत: शे’र के किसी मुक़ाम पर लगाया जा सकता । तो इसे सभी मुक़ाम पर लगा कर देखते  है

112---112---112---112- [ बह्र-ए-मुतदारिक मुसम्मन मख़्बून ]

चूँकि अब यह मुज़ाहिफ़ बह्र हो गई और अब इस पर तस्कीन-ए-औसत का अमल हो सकता है।

[ तस्कीन-ए-औसत का अमल = अगर किसी सिंगल मुज़ाहिफ़ रुक्न में  तीन मुतहर्रिक हर्फ़ एक साथ आ जाएँ तो बीच वाला मुतहर्रिक [ यानी औसत वाला मुतहर्रिक -साकिन-] किया जा सकता है । 

यहाँ  112 = फ़े अ’  लुन = फ़े- मुतहर्रिक+ ऐन -मुतहर्रिक + लाम- मुतहर्रिक + नून [साकिन]  यानी -3- मुतहर्रिक एक साथ

यानी 112 को 22 किया जा सकता है 

यानी 112---112--112---112 = 22--22--22--22 

कुछ याद आया ? बहर-ए-मुतक़ारिब  भी यही वज़न आया था जिसे हमने-A- से दिखाया था

इस बह्र की मुज़ाहिफ़ शकल भी हो सकती है 

112---112---112---112  // 112--112--112---112 =   तस्कीन औसत के अमल से 

= 22---22---22---22 // 22--22---22---22-

कुछ याद आया ? बहर-ए-मुतक़ारिब में यही वज़न आया था जिसे हमने -A // A  से दिखाया था

और वही शर्त यहाँ भी लागू होगी --कि 1-1 को 2 तो किया जा सकता है मगर 2 को 1-1 नहीं किया जा सकता। 

  ध्यान रहे  शकल भले ही मीर की बह्र सी लगती है परन्तु यह बह्र-ए-मीर  है नहीं  जैसा कि बहुत से लोग समझते है।

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अब दूसरी

[ख 212--212---212---212 पर ख़ब्न + कता’ का ज़िहाफ़ लगा कर देखते 

[ note - ख़ल’अ  एक मुरक्कब ज़िहाफ़ है जो    खब्न + कत’अ के मेल से बनता है मुज़ाहिफ़ को ’ मख़्लूअ’ कहते हैं।

यह ख़ास ज़िहाफ़ है और यह ह अरूज़ / ज़र्ब के मुक़ाम पर ही लगता है ]

यानी 

212+ ख़ब्न              = मुज़ाहिफ़ मख़्बून 112

212+ ख़ब्न+क़त’अ = मुज़ाहिफ़ मख़्लूअ’ 12 

इस ज़िहाफ़ के लगाने से 

212---212--212---212- की शकल 

112 ----112---112--12 हो जाएगी। अब चूंकि यह मुज़ाहिफ़ बह्र हो गई तो इस परभी तस्कीन-ए-औसत का अमल हो सकता है और तब एक वज़न यह भी बरामद होगी

22--22--22--12 कुछ याद आया ? बहर-ए-मुतक़ारिब में यही वज़न आया था जिसे हमने - B- से दिखाया था

और इसकी मुज़ाहिफ़ शकल भी मुमकिन है यानी

22--22--22--12 // 22--22--22--12 कुछ याद आया ? बहर-ए-मुतक़ारिब में यही वज़न आया था जिसे हमने

-B// B- से दिखाया था

और यह मीर की बह्र नही है अगरचे शकल कुछ वैसी ही लगती है।

ख़ैर

कहने का मतलब यह है कि आप लोग जो

22--22--22--22 के  आधार पर शायरी करते है उससे यह पता नहीं चलता कि आप ने बहर मुतक़ारिब से बाँधा है या मुतदारिक से ।

और फिर हम कयास लगाने लगते है कि सम वाले स्थान पर  2 हो-- विषम वाले स्थान पर 2 हो ---आदि आदि।

बेहतर यही होगा कि बह्र / वज़न की मूल  शकल ही लिखे जिससे पता तो चले कि आप मुतकारिब की बात कर रहे हैं या मुतदारिक की बात कर रहे है

हमें लगता है कि बहुत से लोगो को 

22--22--22--22//22--22--22--22 बहुत आसान वज़न लगता है मगर ऐसा है नहीं।

हाँ अगर आप के सभी लफ़्ज़ के वज़न - 22- पर है तो कोई बात नहीं । मगर अमूमन ऐसा होता नहीं।

[नोट -आप लोगों से अनुरोध है कि अगर कहीं कुछ ग़लत बयानी हो गई हो तो निशानदिही  ज़रूर फ़र्माएँ   कि मैं आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सकूं~।

सादर

-आनन्द.पाठक-





उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 109 : बह्र 21---121---121---12 पर चर्चा

 किस्त 109  :  बह्र 21---121---121--12 पर एक चर्चा 

क्रमांक 108 से आगे-----

पिछली क़िस्तों में बह्र-ए-मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम से बरामद होने वाली दो मुज़ाहिफ़ बहरों की चर्चा की थी
[A] = 21---121----121---122 और तख़्नीक़ के अमल से एक मख़्सूस वज़न [ ख़ास वज़न] 22--22--22--22 भी हासिल किया थाऔर इसकी मुज़ाहिफ़ शकल 
 [A // A ] = 21---121--121--122 // 21--121--121--122 [ 16 रुक्नी , 16 मात्रा भार ]] वज़न की भी चर्चा की थी और जिस पर तख़्नीक़ के अमल से 
एक मख़्सूस  वज़न 22--22--22--22  // 22--22--22--22  [ 16-रुक्नी] भी हासिल किया था।
उसी प्रकार 
[B]]  = 21--121--121--12  और तख़्नीक़ के अमल से एक मख़्सूस वज़न 22--22--22--2 भी हासिल किया था और उसकी मुज़ाहिफ़ शकल 
[B //B ] = 21---121--121--12 // 21--121--121--12 [ 16 रुक्नी , 14 मात्रा भार ] वज़न की भी चर्चा की थी जिस पर तख़्नीक़ के अमल से एक मख़सूस वज़न
= 22--22--22--2 //     22 --22--22--2 भी हासिल किया था।
ये तमाम औज़ान फिर भी मीर की बह्र नहीं ।
आज इन्ही   के आधार पर मीर के बह्र की चर्चा करेंगे

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 हमारे कुछ मित्रों ने मीर की बह्र की व्याख्या अपने अपने तरीके से ,अपनी अपनी सुविधानुसार कर रखा है - गोया हाथी की व्याख्या किसी ने सूँड से की, किसी ने पूँछ से की. किसी ने पैर से की किसी ने कान से की।
 वैसे तो बह्र-ए-मीर पर मैने एक विस्तृत आलेख अपने ब्लाग पर [ https://www.arooz.co.in/2020/06/60.html लगा रखा है जो पाठक गण इच्छुक हों वहाँ पढ़ सकते है।
www.arooz.co.in  मंच के जो पाठक वहाँ नहीं जा सकते उनके लिए मीर के बह्र के बारे में कुछ बातें यहाँ लिख रहा हूँ ।
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अच्छा 
बह्र  A//A   तो समझ में आ गया कि यह बह्र [A ] की मुज़ाइफ़ [ दो गुनी की हुई ] बह्र है जिसमें बाएँ भाग का मात्रा भार ,दाएँ भाग के मात्रा भार के बराबर है यानी 16//16
B//B  भी समझ में आ गया कि यह बह्र[B] की मुज़ाइफ़ [ दो गुनी की हुई ] बह्र है जिसमें बाएँ भाग का मात्रा भार ,दाएँ भाग के मात्रा भार के बराबर है यानी 14/14 और यह दोनो अमल अरूज़ के ऐन क़ायदा के मुताबिक़ भी है । और यह क़ायदा मीर से पहले भी राइज़ [ प्रचलन में] था और आज भी है ।

तो फिर  A  //  B  क्या है?
 यह तो न [A ] की मुज़ाइफ़ है और न ही [B] की ही मुज़ाइफ़ है। और इस कम्बीनेशन पर क्लासिकल अरूज़ भी कुछ नहीं कहता है। । उस समय भी अरूज़ में ऐसे कम्बीनेशन पर भी  कुछ कहा , लिखा नहीं गया । यानी दोनॊ भाग 16-रुक्नी तो है मगर मात्रा भार मुखतलिफ़ है 16 // 14
21--121--121---122 // 21--121--121--12 = 16//14 
तो फिर यह कौन सी बह्र है ? 
यही बह्र-ए-मीर का  मूल वज़न है ।और इस पर भी तख़नीक़ का अमल हो सकता है जिससे कई मुतबादिल औज़ान बरामद हो सकते है ।
कुछ बुनियादी बातें--
1-इस बह्र में मिसरा -2- से शुरु होता है और 2 पर खत्म भी होता है
2- इस बह्र में 1-1 को 2 तो कर सकते है मगर 2 को 1-1 नहीं कर सकते
3- बाएँ वाला भाग में 16-मात्रा भार होगा और दाएँ वाले भाग मे 14- मात्रा भार [ यानी एक सबब-ए-ख़फ़ीफ़ कम }
यानी बाएँ वाले गाल में एक गड्ढा  [dimple] समझ लीजिए जो इस बह्र की खूबसूरती बढ़ा देता है।
4- यह भी एक आहंगखेज़ बह्र है । 
5- पत्ता पत्ता बूटा बूटा--[ मीर की बह्र मे} यह ग़ज़ल --कई गायकों ने गाया है। फ़िल्म " मिरजा ग़ालिब " [गुलजार द्वारा निर्देशित , नसरुद्दीन शाह द्वारा अभिनीत]  में यह ग़ज़ल बड़े दिलकश अन्दाज़ में गाया है --आप भी सुन कर लुत्फ़ अन्दोज़ हो सकते हैं।

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इस बह्र में [ और ऐसी ही अन्य बह्रों में]  मिसरो में वज़न की Flexibilty तो बहुत होती है मगर एक constaint भी है जिस पर बहुत से लोग ध्यान नहीं देते।
अगर मूल बह्र को ध्यान से देखेंगे तो एक बात स्पष्ट होगी --कि जो रुक्न -1-[ मुतहर्रिक] पर गिर रहा है ठीक उसके सामने वाला रुक्न -1-[ मुतहर्रिक] से शुरु भी हो रहा है 
जैसे --
पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है--[हाल+ हमारा]
बाग तो सारा जाने है    [ बाग़+तो ] --तो यहाँ -1- की वज़न पर है मुतहर्रिक है
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इस वज़न से मीर की कई ग़ज़लों [ मिसरों ] की तक़्तीअ ब आसानी हो जाती है मगर बावज़ूद इसके कुछ मिसरों की तक्तीअ फिर भी नहीं हो पाती है --जिसे हम ’अपवाद’ स्वरूप कह सकते है।

चूँकि उस समय [ मीर के ज़माने में ] ऐसे कम्बीनेशन का कहीं ज़िक्र नहीं था तो शम्स्सुरर्हमान फ़ारुक़ी साहब ने इस बह्र का नाम " बह्र-ए-मीर ’ रख दिया । यह नाम फ़ारुक़ी साहब का दिया हुआ नाम है। फ़ारुक़ी साह्ब ्ने मीर की शायरी पर बहुत काम किया है। और उन्होने मीर की ऐसी गज़लो की तक्तीअ करने के लिए --एक वज़न [ बहुत से Ifs n Buts के साथ ] अपनी किताब [ दर्स-ए-बलाग़त में] तज्वीज़ भॊ किया है 
जब कि डा0 आरिफ़ हसन ख़ान साहब [ मे’राज उल अरूज़ ्किताब के लेखक] ने अपने एक आलेख में ऊपर वाला वज़न तजवीज़ किया है ।
फिर भी दोनॊ तजवीज से भी मीर के ग़ज़ल के कुछ मिसरों की तक्तीअ नहीं हो पाती।

अगले क़िस्त में --एक ऐसे ही बह्र की चर्चा करेंगे जिससे  22--22--22--22// 22--22--22--22  का भी वज़न बरामद हो सकता है मगर वह बह्र-ए-मीर नहीं होगा ।

[नोट -आप लोगों से अनुरोध है कि अगर कहीं कुछ ग़लत बयानी हो गई हो तो निशानदिही  ज़रूर फ़र्माएँ   कि मैं आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सकूं~।

सादर
-आनन्द.पाठक-

Saturday, November 9, 2024

उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 108 :बह्र 21--121--121--12 पर एक चर्चा

 किस्त 108  :  बह्र 21---121---121--12 पर एक चर्चा 

क्रमांक 107 से आगे-----


पिछली क़िस्त में बह्र-ए-मुतक़ारिब से निकली एक मुज़ाहिफ़ बह्र

A =  21---121---121---122 पर चर्चा की थी और तख़्नीक़ के अमल से प्राप्त होने वाले अन्य औज़ान की भी चर्चा की थी जिसमे एक वज़न 

22---22---22---22 भी था और यह बह्र-ए-मीर नहीं है

साथ ही इसके 

A//A =21---121---121---122  // 21---121---121---122 और तख़्नीक़ के अमल से प्राप्त होने वाले अन्य औज़ान की भी चर्चा की थी

जिसमे एक वज़न 

22---22---22---22 // 22---22--22---22  भी था। और इनमें से कोई भी वज़न बह्र-ए-मीर नहीं है।

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  आज हम बह्र-ए-मुतक़ारिब से ही प्राप्त होने वाली दूसरी मुज़ाहिफ़ बह्र -B-

B  = 21---121---121---12 की चर्चा करेंगे । देखते हैं -यह बह्र कैसे बनती है ?


आप इस बह्र को 122---122---122---122 को अवश्य पहचानते होंगे।  हाँ वही बह्र-ए-मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम। आप सही हैं।

अब इसके अर्कान पर कुछ ज़िहाफ़ --सरम---क़ब्ज़---हज़्फ़ ---लगा कर देखते है, क्या होता है ।


122 + सरम = असरम   21 

122 + क़ब्ज़ = मक़्बूज़  121

122 + हज़्फ़ = महज़ूफ़ 12

 तो 122---122--122--122 की मुज़ाहिफ़ शकल हो जाएगी

यानी

B = 21----121----121---12 

[ बह्र-ए-मुतक़ारिब असरम मक़्बूज़ मक़्बूज़ महज़ूफ़ ]

और इस बह्र पर भी पहले की तरह तख़नीक़ का अमल हो सकता है और कई मुतबादिल औज़ान बरामद किए जा सकते हैं।[ आप चाहें तो खुद

कर के मुतमईन हो सकते हैं कि कितने ऐसे कितने मुतबादिल औज़ान बरामद हो सकते है।

जिसमे एक वज़न  22---22---22----2 का भी बरामद होगा । मगर यह बह्र-ए-मीर नहीं होगा।

अच्छा, अरूज़ के कायदे के मुताबिक इस बहर के भी मुज़ाइफ़ शकल [ दो गुनी शकल ] की जा सकती है । यानी

B //B = 21---121---121---12 // 21--121--121---12- और इस पर भी तख़्नीक़ का अमल किया जा सकता है और कई मुतबादिल औज़ान बरामद हो सकते है

जिसमें से एक वज़न 

22--22--22--2 // 22--22--22--2 भी होगा मगर वह भी बह्र-ए-मीर नहीं होगा।


ऐसी बह्रों में मिसरों को  Fexibility  तो बहुत मिलती है मगर एक Constraint भी होता है । इस Constraint  की चर्चा बह्र-ए-मीर की जब चर्चा करेंगे तो तब करेंगे।

ऐसी बहरो की Analysis मूल बह्र  -A-  और  -B- से करेंगे तो तक़्तीअ’ करने में /समझने में सुविधा होगी। 

जब आप 22--22--22--22 या 22--22--22--2 से करेंगे तो उलझन पैदा होगी और यह putting the Horse before the Cart वाली स्थिति होगी।

आप बह्र -A-  और बह्र  -B- याद कर रख लें -। बह्र-ए-मीर की चर्चा में इन दोनों बह्रों की ज़रूरत पड़ेगी जो मीर की बह्र समझने में आसानी पैदा करेगी ।


अगली क़िस्त में अब बह्र-ए-मीर की चर्चा करेंगे---


[नोट -आप लोगों से अनुरोध है कि अगर कहीं कुछ ग़लत बयानी हो गई हो तो निशानदिही  ज़रूर फ़र्माएँ   कि मैं आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सकूं~।

सादर


-आनन्द.पाठक-


उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 107 : बह्र 21---121---121--122 पर एक चर्चा

 किस्त 107 :  बह्र 21---121---121--122 पर एक चर्चा 


किसी मंच पर कुछ दिनों पहले मैने अपनी एक ग़ज़ल लगाई थी जिसके चन्द अश’आर थे


झूठे ख़्वाब  दिखाते क्यों हो ?
सच को तुम झुठलाते क्यों हो? 

जब जब लाज़िम था टकराना,
हाथ खड़े कर जाते क्यों हो  ? 

पाक अगर है दिल तो ’आनन’,
दरपन से घबराते क्यों हो ? 


 और मूल बह्र लिखी थी  21---121---121---122 और नोट में यह लिखा था कि अगर आमने -सामने  1-1 को =2 कर दें तो एक नया वज़न मिलेगा 22----22---22----22  मगर यह ’मीर की बह्र’ नहीं होगी।

इस पर मेरे कुछ मित्रों ने इस नोट पर  विस्तार की चर्चा की माँग की थी। यह आलेख उसी संदर्भ में लिखा गया है।

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मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि ’मीर की बह्र" के बारे में मेरे बहुत से दोस्तॊ को स्पष्टता नहीं है। यद्यपि मीर की बह्र के बारे में मैने एक लेख अपने ब्लाग 

पर विस्तार से लिखा हूँ , क़िस्त 59 [ https://www.arooz.co.in/2020/06/60.html]

www.arooz.co.in

इच्छुक पाठक गण वहाँ देख/पढ़ सकते हैं। आगामी क़िस्तों में यहाँ भी ’मीर की बह्र’ के बारे लिखता रहूँगा। 

अभी 

21--121--121--122 पर चर्चा करते है कि यह बह्र कैसे बनती है और इससे 22--22--22--22 का वज़न कैसे बरामद किया जा सकता है।

आप इस बह्र को तो बख़ूबी पहचानते होंगे

122-----122-----122-----122  [ बह्र-ए- मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम ] और आप लोगों ने इस बह्र/वज़न में काफ़ी शायरी भी की होगी।

अगर इन सालिम अर्कान पर अगर कुछ ज़िहाफ़ लगा दें तो क्या होगा? [ ज़िहाफ़ात तो आप लोग जानते होंगे। अगर नहीं तो इसके बारे में मेरे ब्लाग पर विस्तार से देखा जा सकता है।

क़िस्त 12 से क़िस्त 21 तक  www.arooz.co.in पर।

[ ज़िहाफ़ हमेशा सालिम रुक्न पर पर लगता है जबकि दो अमल [ तस्कीन-ए-औसत का अमल  और तख़्नीक़ का अमल ] ऐसे है जो सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ रुक्न [ यानी ज़िहाफ़ शुदा रुक्न]

पर ही लगते है ---सालिम रुक्न पर कभी नहीं लगते। इन दोनों अमल के बारे में अगले क़िस्त में विस्तार से चर्चा  करूँगा। अभी हम 

122---122---122---122 पर ही चर्चा केन्द्रित करते हैं। इसप्र हम दो ज़िहाफ़ --सरम -- और--कब्ज़ का ज़िहाफ़ लगाते हैं , देखते हैं क्या होता है?

 122+ सरम = असरम  21   [ सरम एक ख़ास ज़िहाफ़ है जो हमेशा  शे’र के इब्तिदा/असर के मुक़ाम पर ही लगते हैं।

122+ कब्ज़ = मक़्बूज़   121  [ क़ब्ज़ एक आम ज़िहाफ़ है जो शे;र के किसी मुक़ाम पर लग सकते है --यहाँ हस्व के मुक़ाम पर लगा कर देखते हैं।

122---122---122---122 की शकल

21--121--121---122  हो जाएगी यानी

फ़’अ लु--फ़ऊलु--फ़ऊलु--फ़ऊलुन

बह्र-ए-मुतक़ारिब  असरम मक़्बूज़ मक़्बूज़ सालिम अल आख़िर। इसे  हम अभी -A- से दिखाते है सुविधा के लिए। यानी


A= 21---121----121----122

इस बह्र की  मुजाइफ़ [ दो गुनी की हुई बह्र] भी मुमकिन है यानी

A // A = 21---121---121---122 // 21--121--121--122 

इस बह्र का नाम तो वही होगा जो -अ- का है बस एक शब्द मुज़ाइफ़ और जोड़ देंगे। यानी

बह्र-ए-मुतक़ारिब असरम मक़्बूज़ मक़बूज़ सालिम अल आख़िर मुज़ाइफ़

[ ध्यान देने की बात --मुज़ाहिफ़ और मुज़ाइफ़ दोनो अलग अलग शब्द हैं =मुज़ाहिफ़ --शब्द ज़िहाफ़ से बना है यानी जिस रुक्न पर ज़िहाफ़ लगा हो]

चूँकि अब यह , बह्र-ए-मुतक़ारिब की मुज़ाहिफ़ शकल हो गई तो अब इस पर ; तख़्नीक़’ का अमल हो सकता है ।

[ तखनीक़ और तस्कीन-ए-औसत का अमल क्या होता है और यह मुज़ाहिफ़ रुक्न पर कैसे काम करते है, इसकी क्या सीमाएँ है, ्क्या rider  है इस पर अलग से कभी चर्चा करेंगे।

 बस आप यहाँ  इतना ही समझ लें कि जब दो adjacent, मुज़ाहिफ़ रुक्न में 1-1 आमने सामने आ जाए तो वह -2-पर लिया जा सकता है ] यह अमल दो रुक्न पर साथ साथ

हो सकता है या सभी रुक्न पर एक साथ भी हो सकता है । और उस बदले हुए रुक्न मे मुख़्निक़ शब्द निशानदिही के लिए जोड़ देते है जिससे यह पता चलता रहे कि किस रुक्न

पर यह अमल किया गया है । 

जैसे

21-121--121---122 में [पहले + दूसरे रुक्न] पर तख़्नीख का अमल करें तो वज़न

22--21--121--122  हो जायेगा और नाम हो जाएगा

असरम, मक़्बूज़ मुख़्निक़, मक़्बूज़, सालिम

अगर हम [दूसरे+ तीसरे रुक्न ]पर यह अमल करें तो-

21----122---21---122 और नाम हो जायेगा 

असरम, मक़्बूज़, मक़्बूज़ मुख़्निक़, सालिम


और आप ऐसे ही अन्य  दो दो अर्कान पर क्रमश: अमल करते जाएँ।

यदि सभी अर्कान पर एक साथ तख़्निक़ का अमल कर दें तो क्या होगा ?

तो आप को यह वज़न मिलेगा

22---22---22---22-- 

बहुत से लोग इसे ही मीर की बह्र समझते है,मगर फिर भी यह मीर की बह्र नहीं होगी ।

[ मीर की बह्र पर आगे चर्चा करेंगे अभी हम उस मुक़ाम तक पहुंचने के लिए एक एक  सीढ़ी चढ़ रहे है--कॄपया धैर्य बनाए रखें]


आप बता सकते है कि 21--121--121--122 पर तख़्नीक के अमल से कितने नए औज़ान बरामद हो सकते हैं?

आप फ़ुरसत में स्वयं कर के देखें और बताएँ। 

एक दिलचस्प बात और--

यह सभी औज़ान मुतबादिल [ आपस में बदले जाने योग्य ] होते है। मतलब अगर आप ने मूल बहर 21--121--121---122 में ग़ज़ल कही है 

तो उस ग़ज़ल का कोई मिसरा इन्ही मुतबादिल औज़ान  के किसी एक वज़न मे होगा या होना चाहिए।

ऐसा क्यों?

ऐसी बह्र में .अगर आप ने सभी अर्कान पर तख़्निक़ का अमल कर दिया हो और वह लिस्ट आप के सामने हो [ मुझे उमीद है कि अबतक आप ने कर लिया होगा]

तो आप ध्यान से देखेंगे कि Individual  रुक्न का वज़न तो बदल रहा है मगर मिसरा का  Over all वज़न नहीं बदल रहा है । वह Constant ही

है यानी वज़न 16 का 16 ही है। इसीलिए इसे मुतबादिल वज़न कहते है कि ये तमाम दस्तयाब वज़न आपस में बदले जा सकते है और मिसरा के overall

वज़न पर कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा है।

ख़ैर

यही बात मुरब्ब: और मुसद्दस वाली बह्र पर भी लागू हो सकती है यानी

मुरब्ब:   22--22 या 22--22-// 22--22

22--22--22  या 22--22--22// 22--22-22

फिर भी यह मीर की बह्र नहीं है । यानी " जहाँ देखो मारियो--अपना समझ के खा लियो" -वाली बात नहीं है ।

अभी तक जितनी बातें की है सब अरूज़ के नियम क़ानून क़वायद के दायरे में ही बात की है। अभी तक अरूज़ के खिलाफ़वर्ज़ी की बात नहीं की है।

अब अगली क़िस्त में बह्र-ए- मुतक़ारिब से बरामद होने वाली दूसरी मुज़ाहिफ़ बह्र की बात करेंगे----

[नोट -आप लोगों से अनुरोध है कि अगर कहीं ग़लत बयानी हो गई हो तो निशानदिही फ़र्मा दें कि मैं आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सकूं~।

सादर

-आनन्द.पाठक-