किस्त 110 : बह्र 212--212--212--212 की एक मुज़ाहिफ़ बह्र पर चर्चा
क्रमांक 109 से आगे-----
पिछली क़िस्तों में हमने देखा था कि कैसे बह्र-ए-मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम
122---122---122---122 पर ज़िहाफ़ और तख़्नीक के अमल से
21--121---121--122 वज़न बरामद किया जा सकता है या फिर इससे
22--22--22--22 या 22--22--22--22--// 22--22--22--22 वज़न बरामद किया जा सकता है
और यह बह्र-ए-मीर का वज़न नहीं है । अगरचे मीर की बहर बह्र-ए-मुतक़ारिब से ही बनती है
आज यही तमाम वज़न बह्र-ए-मुतदारिक मुसम्मन सालिम से भी ज़िहाफ़ और तस्कीन ए औसत के अमल से हू-ब-हू same to same वज़न बरामद किया जा सकता है ।
देखते हैं कैसे ?
यह बह्र तो आप पहचानते होंगे और जानते भी होंगे।
[क] 212---212---212---212 जी हाँ आप सही हैं । बह्र-ए-मुतदारिक मुसम्मन सालिम।
अब इस पर एक ज़िहाफ़ --ख़ब्न --लगा कर देखते है ।
212+ ख़ब्न = मुज़ाहिफ़ मख़्बून 112
चूंकि खब्न एक आम ज़िहाफ़ है अत: शे’र के किसी मुक़ाम पर लगाया जा सकता । तो इसे सभी मुक़ाम पर लगा कर देखते है
112---112---112---112- [ बह्र-ए-मुतदारिक मुसम्मन मख़्बून ]
चूँकि अब यह मुज़ाहिफ़ बह्र हो गई और अब इस पर तस्कीन-ए-औसत का अमल हो सकता है।
[ तस्कीन-ए-औसत का अमल = अगर किसी सिंगल मुज़ाहिफ़ रुक्न में तीन मुतहर्रिक हर्फ़ एक साथ आ जाएँ तो बीच वाला मुतहर्रिक [ यानी औसत वाला मुतहर्रिक -साकिन-] किया जा सकता है ।
यहाँ 112 = फ़े अ’ लुन = फ़े- मुतहर्रिक+ ऐन -मुतहर्रिक + लाम- मुतहर्रिक + नून [साकिन] यानी -3- मुतहर्रिक एक साथ
यानी 112 को 22 किया जा सकता है
यानी 112---112--112---112 = 22--22--22--22
कुछ याद आया ? बहर-ए-मुतक़ारिब भी यही वज़न आया था जिसे हमने-A- से दिखाया था
इस बह्र की मुज़ाहिफ़ शकल भी हो सकती है
112---112---112---112 // 112--112--112---112 = तस्कीन औसत के अमल से
= 22---22---22---22 // 22--22---22---22-
कुछ याद आया ? बहर-ए-मुतक़ारिब में यही वज़न आया था जिसे हमने -A // A से दिखाया था
और वही शर्त यहाँ भी लागू होगी --कि 1-1 को 2 तो किया जा सकता है मगर 2 को 1-1 नहीं किया जा सकता।
ध्यान रहे शकल भले ही मीर की बह्र सी लगती है परन्तु यह बह्र-ए-मीर है नहीं जैसा कि बहुत से लोग समझते है।
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अब दूसरी
[ख 212--212---212---212 पर ख़ब्न + कता’ का ज़िहाफ़ लगा कर देखते
[ note - ख़ल’अ एक मुरक्कब ज़िहाफ़ है जो खब्न + कत’अ के मेल से बनता है मुज़ाहिफ़ को ’ मख़्लूअ’ कहते हैं।
यह ख़ास ज़िहाफ़ है और यह ह अरूज़ / ज़र्ब के मुक़ाम पर ही लगता है ]
यानी
212+ ख़ब्न = मुज़ाहिफ़ मख़्बून 112
212+ ख़ब्न+क़त’अ = मुज़ाहिफ़ मख़्लूअ’ 12
इस ज़िहाफ़ के लगाने से
212---212--212---212- की शकल
112 ----112---112--12 हो जाएगी। अब चूंकि यह मुज़ाहिफ़ बह्र हो गई तो इस परभी तस्कीन-ए-औसत का अमल हो सकता है और तब एक वज़न यह भी बरामद होगी
22--22--22--12 कुछ याद आया ? बहर-ए-मुतक़ारिब में यही वज़न आया था जिसे हमने - B- से दिखाया था
और इसकी मुज़ाहिफ़ शकल भी मुमकिन है यानी
22--22--22--12 // 22--22--22--12 कुछ याद आया ? बहर-ए-मुतक़ारिब में यही वज़न आया था जिसे हमने
-B// B- से दिखाया था
और यह मीर की बह्र नही है अगरचे शकल कुछ वैसी ही लगती है।
ख़ैर
कहने का मतलब यह है कि आप लोग जो
22--22--22--22 के आधार पर शायरी करते है उससे यह पता नहीं चलता कि आप ने बहर मुतक़ारिब से बाँधा है या मुतदारिक से ।
और फिर हम कयास लगाने लगते है कि सम वाले स्थान पर 2 हो-- विषम वाले स्थान पर 2 हो ---आदि आदि।
बेहतर यही होगा कि बह्र / वज़न की मूल शकल ही लिखे जिससे पता तो चले कि आप मुतकारिब की बात कर रहे हैं या मुतदारिक की बात कर रहे है
हमें लगता है कि बहुत से लोगो को
22--22--22--22//22--22--22--22 बहुत आसान वज़न लगता है मगर ऐसा है नहीं।
हाँ अगर आप के सभी लफ़्ज़ के वज़न - 22- पर है तो कोई बात नहीं । मगर अमूमन ऐसा होता नहीं।
[नोट -आप लोगों से अनुरोध है कि अगर कहीं कुछ ग़लत बयानी हो गई हो तो निशानदिही ज़रूर फ़र्माएँ कि मैं आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सकूं~।
सादर
-आनन्द.पाठक-
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