Tuesday, November 12, 2024

उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 109 : बह्र 21---121---121---12 पर चर्चा

 किस्त 109  :  बह्र 21---121---121--12 पर एक चर्चा 

क्रमांक 108 से आगे-----

पिछली क़िस्तों में बह्र-ए-मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम से बरामद होने वाली दो मुज़ाहिफ़ बहरों की चर्चा की थी
[A] = 21---121----121---122 और तख़्नीक़ के अमल से एक मख़्सूस वज़न [ ख़ास वज़न] 22--22--22--22 भी हासिल किया थाऔर इसकी मुज़ाहिफ़ शकल 
 [A // A ] = 21---121--121--122 // 21--121--121--122 [ 16 रुक्नी , 16 मात्रा भार ]] वज़न की भी चर्चा की थी और जिस पर तख़्नीक़ के अमल से 
एक मख़्सूस  वज़न 22--22--22--22  // 22--22--22--22  [ 16-रुक्नी] भी हासिल किया था।
उसी प्रकार 
[B]]  = 21--121--121--12  और तख़्नीक़ के अमल से एक मख़्सूस वज़न 22--22--22--2 भी हासिल किया था और उसकी मुज़ाहिफ़ शकल 
[B //B ] = 21---121--121--12 // 21--121--121--12 [ 16 रुक्नी , 14 मात्रा भार ] वज़न की भी चर्चा की थी जिस पर तख़्नीक़ के अमल से एक मख़सूस वज़न
= 22--22--22--2 //     22 --22--22--2 भी हासिल किया था।
ये तमाम औज़ान फिर भी मीर की बह्र नहीं ।
आज इन्ही   के आधार पर मीर के बह्र की चर्चा करेंगे

---- ---
 हमारे कुछ मित्रों ने मीर की बह्र की व्याख्या अपने अपने तरीके से ,अपनी अपनी सुविधानुसार कर रखा है - गोया हाथी की व्याख्या किसी ने सूँड से की, किसी ने पूँछ से की. किसी ने पैर से की किसी ने कान से की।
 वैसे तो बह्र-ए-मीर पर मैने एक विस्तृत आलेख अपने ब्लाग पर [ https://www.arooz.co.in/2020/06/60.html लगा रखा है जो पाठक गण इच्छुक हों वहाँ पढ़ सकते है।
www.arooz.co.in  मंच के जो पाठक वहाँ नहीं जा सकते उनके लिए मीर के बह्र के बारे में कुछ बातें यहाँ लिख रहा हूँ ।
---  -- 
अच्छा 
बह्र  A//A   तो समझ में आ गया कि यह बह्र [A ] की मुज़ाइफ़ [ दो गुनी की हुई ] बह्र है जिसमें बाएँ भाग का मात्रा भार ,दाएँ भाग के मात्रा भार के बराबर है यानी 16//16
B//B  भी समझ में आ गया कि यह बह्र[B] की मुज़ाइफ़ [ दो गुनी की हुई ] बह्र है जिसमें बाएँ भाग का मात्रा भार ,दाएँ भाग के मात्रा भार के बराबर है यानी 14/14 और यह दोनो अमल अरूज़ के ऐन क़ायदा के मुताबिक़ भी है । और यह क़ायदा मीर से पहले भी राइज़ [ प्रचलन में] था और आज भी है ।

तो फिर  A  //  B  क्या है?
 यह तो न [A ] की मुज़ाइफ़ है और न ही [B] की ही मुज़ाइफ़ है। और इस कम्बीनेशन पर क्लासिकल अरूज़ भी कुछ नहीं कहता है। । उस समय भी अरूज़ में ऐसे कम्बीनेशन पर भी  कुछ कहा , लिखा नहीं गया । यानी दोनॊ भाग 16-रुक्नी तो है मगर मात्रा भार मुखतलिफ़ है 16 // 14
21--121--121---122 // 21--121--121--12 = 16//14 
तो फिर यह कौन सी बह्र है ? 
यही बह्र-ए-मीर का  मूल वज़न है ।और इस पर भी तख़नीक़ का अमल हो सकता है जिससे कई मुतबादिल औज़ान बरामद हो सकते है ।
कुछ बुनियादी बातें--
1-इस बह्र में मिसरा -2- से शुरु होता है और 2 पर खत्म भी होता है
2- इस बह्र में 1-1 को 2 तो कर सकते है मगर 2 को 1-1 नहीं कर सकते
3- बाएँ वाला भाग में 16-मात्रा भार होगा और दाएँ वाले भाग मे 14- मात्रा भार [ यानी एक सबब-ए-ख़फ़ीफ़ कम }
यानी बाएँ वाले गाल में एक गड्ढा  [dimple] समझ लीजिए जो इस बह्र की खूबसूरती बढ़ा देता है।
4- यह भी एक आहंगखेज़ बह्र है । 
5- पत्ता पत्ता बूटा बूटा--[ मीर की बह्र मे} यह ग़ज़ल --कई गायकों ने गाया है। फ़िल्म " मिरजा ग़ालिब " [गुलजार द्वारा निर्देशित , नसरुद्दीन शाह द्वारा अभिनीत]  में यह ग़ज़ल बड़े दिलकश अन्दाज़ में गाया है --आप भी सुन कर लुत्फ़ अन्दोज़ हो सकते हैं।

---   ----
इस बह्र में [ और ऐसी ही अन्य बह्रों में]  मिसरो में वज़न की Flexibilty तो बहुत होती है मगर एक constaint भी है जिस पर बहुत से लोग ध्यान नहीं देते।
अगर मूल बह्र को ध्यान से देखेंगे तो एक बात स्पष्ट होगी --कि जो रुक्न -1-[ मुतहर्रिक] पर गिर रहा है ठीक उसके सामने वाला रुक्न -1-[ मुतहर्रिक] से शुरु भी हो रहा है 
जैसे --
पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है--[हाल+ हमारा]
बाग तो सारा जाने है    [ बाग़+तो ] --तो यहाँ -1- की वज़न पर है मुतहर्रिक है
-----
इस वज़न से मीर की कई ग़ज़लों [ मिसरों ] की तक़्तीअ ब आसानी हो जाती है मगर बावज़ूद इसके कुछ मिसरों की तक्तीअ फिर भी नहीं हो पाती है --जिसे हम ’अपवाद’ स्वरूप कह सकते है।

चूँकि उस समय [ मीर के ज़माने में ] ऐसे कम्बीनेशन का कहीं ज़िक्र नहीं था तो शम्स्सुरर्हमान फ़ारुक़ी साहब ने इस बह्र का नाम " बह्र-ए-मीर ’ रख दिया । यह नाम फ़ारुक़ी साहब का दिया हुआ नाम है। फ़ारुक़ी साह्ब ्ने मीर की शायरी पर बहुत काम किया है। और उन्होने मीर की ऐसी गज़लो की तक्तीअ करने के लिए --एक वज़न [ बहुत से Ifs n Buts के साथ ] अपनी किताब [ दर्स-ए-बलाग़त में] तज्वीज़ भॊ किया है 
जब कि डा0 आरिफ़ हसन ख़ान साहब [ मे’राज उल अरूज़ ्किताब के लेखक] ने अपने एक आलेख में ऊपर वाला वज़न तजवीज़ किया है ।
फिर भी दोनॊ तजवीज से भी मीर के ग़ज़ल के कुछ मिसरों की तक्तीअ नहीं हो पाती।

अगले क़िस्त में --एक ऐसे ही बह्र की चर्चा करेंगे जिससे  22--22--22--22// 22--22--22--22  का भी वज़न बरामद हो सकता है मगर वह बह्र-ए-मीर नहीं होगा ।

[नोट -आप लोगों से अनुरोध है कि अगर कहीं कुछ ग़लत बयानी हो गई हो तो निशानदिही  ज़रूर फ़र्माएँ   कि मैं आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सकूं~।

सादर
-आनन्द.पाठक-

No comments:

Post a Comment