Saturday, October 5, 2024

उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 106 : 221---1222 // 221---1222 का सही नाम क्या होगा ?

 क़िस्त 106 : 221---1222  // 221---1222 का सही नाम क्या होगा ?

[ नोट :यह लेख उनके लिए  जो अरूज़ से ज़ौक़-ओ-शौक़  फ़र्माते है या अतिरिक्त जानकारी रखना चाहते है। यहाँ एक बात स्पष्ट कर दूँ बिना इस जानकारी के भी  या इस बह्र का नाम जाने बिना भी आप इस बह्र में शायरी कर सकते है और लोग करते भी हैं--पढ़ कर परेशान होने की आवश्यकता नहीं है]

ख़ैर ।


आप इस बह्र से अवश्य परिचित होंगे । आप ने कभी न कभी इस बह्र में शायरी भी की होगी या ग़ज़ल कही होगी। बड़ी ही दिलकश लोकप्रिय मानूस बह्र हैऔर अमूमन सभी शायरों ने इस बह्र में ग़ज़लें कहीं है। इसी बह्र में इक़बाल की ग़ज़ल के चन्द अश’आर यहाँ लगा रहे हैं-

फिर बाद-ए-बहार आई इक़बाल ग़ज़लख़्वाँ हो

गुंचा है अगर, गुलहो, गुल है तो गुलिस्ताँ  हो ।


तू खाक की मुठ्ठी है ,अज़जा की हरारत से

बरहम हो, परीशाँ हो, वुसअत में बयाबाँ हो


तू जिन्स-ए-मुहब्बत है कीमत है गरां तेरी

कम-माया है सौदागर, इस देश में अरजाँ हो ।


[1] कुछ लोग इस बह्र का नाम  - हज़ज मुसम्मन अख़रब सालिम अख़रब सालिम --या- सिर्फ़ हज़ज मुसम्मन अख़रब सालिम या हज़ज मुसम्मन अख़रब भी कहते है।

[2] जब कि कुछ लोग इस बह्र का नाम --हज़ज मुसम्मन अख़रब मक्फ़ूफ़ मक्फ़ूफ़ मुख़्न्निक सालिम अल आखिर-- बताते है॥

सवाल यह है कि --तो फिर इसका सही नाम क्या होगा?ज इस लेख में इसी पर विचार करेंगे।

यह बह्र बनती कैसे है ?

आप इस बह्र से तो अवश्य परिचित होंगे

--A--------B-------C---------D

1222----1222----1222-----1222

यानी 

मफ़ाईलुन----मफ़ाईलुन----मफ़ाईलुन--- मफ़ाईलुन

जी सही पकड़ा आप ने---यह बह्र-ए-हज़ज मुसम्मन सालिम -- है

अब मुक़ाम [-A-} जो शे’र में सदर/इब्तिदा का मुक़ाम है पर एक ज़िहाफ़ --खर्ब - लगाते है और मुक़ाम [ -B- ] --[ -C- ] जिसे शे’र में हस्व का मुक़ाम कहते है पर -कफ़- का ज़िहाफ़ लगाते है देखते हैं क्या होता है।

1222+ ख़र्ब  = 221  [ अख़रब] = मफ़ऊलु यानी --लु-[1] मुतहर्रिक है

1222+ कफ़ =  1221 [मक्फ़ूफ़] = मफ़ाईलु यानी --लु-[1] मुतहर्रिक है

[ यह ज़िहाफ़ात सालिम रुक्न पर कैसे अमल करते है --इसके विस्तार में जाने की ज़रूरत नहीं --विषय दुरूह हो सकता है] बस आप इसे जान लीजिए या मान लीजिए ।

तो क्या बरामद होगा ?

221---1221---1221----1222

और नाम होगा -- बह्र-ए-हज़ज अख़रब मक्फ़ूफ़  मक्फ़ूफ़ सालिम अल आख़िर । और आप लोगों ने इस बह्र मे अवश्य ग़ज़ल कही होगी। 

अच्छा अब इस पर ’तख़नीक़ का अमल करते है देखते हैं क्या होता है?[ तख़नीक़ का अमल आप ज़रूर जानते होंगे । मैने अपने ब्लाग में इस पर विस्तार से चर्चा की है। फिर भी संक्षेप में बता दूँ---जब दो मुज़ाहिफ़ रुक्न [ ज़िहाफ़शुदा रुक्न] आमने-सामने हों  और तीन-मुतहर्रिक हर्फ़ लगातार एक साथ आ जाए तो बीच वाला मुतहर्रिक हर्फ़ --साकिन हो जाता है]

-1221---1221--- यानी [B] and [C]  पर अमल कर के देखते है । [ B ] का आख़िरी -1- [ लु-मुतहर्रिक और [C] का मुफ़ा [12] [ मींम और फ़े दोनों मुतहर्रिक] यानी तीन मुतहर्रिक [ लु--मीम--फ़े ] एक साथ लगातार आ रहा है तो बीच वाला --मींम--अब [साकिन ] हो कर  -लु- [ मुतहर्रिक] के साथ मिल कर --सबब [ सबब-ए-ख़फ़ीफ़=2] बनाएगा

तब  हस्व वाला पार्ट 1221---1221 = 1222-- 221 बन जाएगा

ध्यान देने की बात यह है कि यह --1222- तखनीक़ के अमल से बना है यह सालिम 1222 वाला 1222 नहीं है

उसी प्रकार  221 बचा हुआ पार्ट है और यह अख़रब वाला 221 नही है।

यानी अब समग्र रूप से देखें तो 

--A----B-----C------D

221--1222---221----1222 

A [ सदर/इब्तिदा वाला ] मुज़ाहिफ़ रुक्न --  अख़रब है

B [ हस्व वाला ]मुज़ाहिफ़ रुक्न---- मक्फ़ूफ़ है

C  [ हस्व वाला] मुज़ाहिफ़ रुक्न ---- मक्फ़ूफ़ मुख़नीक़ है

D [ अरूज़/ज़र्ब वाला]  तो सालिम रुक 1222 है ही ---इस पर कोई रद-ओ-अमल नहीं किया गया अभी तक।


अत: 221---1222 // 221---1222 का सही नाम --हज़ज मुसम्मन अख़रब मक्फ़ूफ़ मक्फ़ूफ़ मुख़्न्निक सालिम अल आखिर-- होगा जो अरूज़ के क़ायदे क़ानून से बना है

बिना अरूज़ की नियमों की खिलाफ़वर्ज़ी किए हुए]

तो सवाल यह है कि  --हज़ज मुसम्मन अख़रब सालिम अख़रब सालिम --यह नाम सही क्यों नही हो सकता ?

इसलिए सही नहीं हो सकता कि ज़िहाफ़ -ख़र्ब--्केवल - सदर/इब्तिदा के मुक़ाम के लिए ख़ास है और वह --हस्व के मुक़ाम पर नही लाया जा सकता --हस्व के मुक़ाम पे लाने से अरूज़ के क़ायदे की खिलाफ़वर्जी होगी।

चलते चलते एक बात और--

यह बह्र --साथ साथ बह्र-ए-शिकस्ता भी है।

[ नोट -आप लोगों से अनुरोध है कि अगर कहीं ग़लत बयानी हो गई हो तो निशानदिही फ़र्मा दें कि मैं आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सकूं~।

सादर

-आनन्द.पाठक-

Wednesday, September 18, 2024

उर्दू बह्र पर एकबातचीत : क़िस्त 105 : इज़ाफ़त में क्रिया का निर्धारण

 क़िस्त 105: इज़ाफ़त में क्रिया का निर्धारण

[ अतिरिक्त जानकारी के लिए आप क़िस्त 70--80---81 भी देख सकते हैं ]

पिछले क़िस्तों [ मसलन क़िस्त 70---क़िस्त 80---क़िस्त 81 ] में इज़ाफ़त और अत्फ़ के बारे में विस्तार से चर्चा कर चुका हूँ।

 आशा करता हूँ इज़ाफ़त और अत्फ़ क्या है, उर्दू शायरी में इनका क्या महत्व या क्या ज़रूरत है -कुछ हद तक आप लोगो ने समझ लिया होगा।

फिर भी संक्षेप में बता दूं कि दर्द-ए-दिल --ग़म-ए-इश्क़---वहशत-ए-दिल ---पैग़ाम-ए-हक़---ख़ाक-ए-वतन---बाम-ए-फ़लक--जल्वा-ए-हुस्न-ए-अजल --जू-ए-आब---राह-ए-मुहब्बत--- बहर-ए-बेकरां----कू-ए-उलफ़त--दर्द-ए-निहाँ --दिल-ए-नादां ---दौर-ए-हाज़िर -बर्ग-ए-गुल - बाद-ए-बहार---चिराग-ए-सहर ---

जैसे युग्म शब्दों को इज़ाफ़त कहते हैं [ जिसे कसरा-ए-इज़ाफ़त भी कहते हैं}

अरबी में क़सरा [उर्दू में ज़ेर] --इसलिए कहते हैं कि ऐसे युग्म शब्द में -" पहले शब्द के आखिरी हर्फ़ के नीचे एक ज़ेर या कसरा की अलामत [निशान] लगा देते हैं । [उर्दू वाले -ए-नही लिखते ] हम हिंदी वाले -ए- लिख कर इसे जताते और  बताते हैं। इस कसरा [ज़ेर] के प्रभाव से --वह आखिरी "हर्फ़’ मुतहर्रिक हो जाता है जो-1- का वज़न देता है। अगर उस आख़िरी हर्फ़ को खींच कर पढ़ेगे तो -2- का भी वज़न देगा

जैसे--गम-ए-दिल= 11 2 भी हो सकता है या 122 भी हो सकता है बह्र की माँग के अनुसार।

दिल-ए-नादाँ = 11 22 भी हो सकता है या 1222  भी हो सकता है बह्र की माँग के अनुसार।

यह फ़ारसी की तरक़ीब है और पुराने शायरों ने अमूमन सभी शायरों ने इसका प्रयोग किया है ख़ास तौर से ग़ालिब ने। आजकल हिंदी में इसका प्रयोग कम ही होता है और होता भी है तो कभी कभी तरकीब उलटी हो जाती है। ख़ैर।

आज हम इस बात पर चर्चा करेंगे कि अगर दो शब्दों को जोड कर जो युग्म शब्द बनेगा तो वह कौन-सी  क्रिया [ फ़े’ल] अनुसरण करेगी ? यानी क्रिया स्त्रीलिंग होगी कि पुल्लिंग होगी ?

हम जानते हैं कि शब्द  या तो स्त्री लिंग [ मुअ’न्नस] होगा  या पुल्लिंग [ मुज़क्कर] होगा । 

आज इसी पर चर्चा करेंगे। 

दो शब्द जोड़ने पर 3-स्थितियाँ बन सकती है ।

स्थिति 1= अगर दोनो शब्द पुल्लिंग [ मुजक्कर] हों तो स्वभावत: क्रिया पुल्लिंग शब्द का अनुसरण करेगी। जैसे इस शे’र से स्पष्ट है

हिज्र की शब, नाल:-ए-दिल वो सदा देने लगे

सुनने वाले रात कटने की  दवा देने लगे ।

-साक़िब लखनवी

नाल: = पुलिंग

दिल = पुल्लिंग

क्रिया = देने लगे-- पुल्लिंग

[ ऐसे ही आप बहुत से उदाहरण खोज सकते हैं}

स्थिति 2 = अगर दोनो शब्द स्त्री लिंग [ मुअ’न्नस] हो तॊ स्वभावत: क्रिया स्त्रीलिंग शब्द का अनुसरण करेगी । जैसे इन शे’रों से स्पष्ट है--

फिर आज आई थी इक मौज-ए-हवा-ए तरब

सुना गई है फ़साने इधर उधर के  मुझे ।

-नासिर काज़मी-

   मौज़ = स्त्रीलिंग

  हवा  = स्त्रीलिंग

क्रिया -= आई थी 

 [ ऐसे ही आप बहुत से उदाहरण खोज सकते हैं}

स्थिति 3= अगर एक शब्द पुल्लिंग हो और दूसरा शब्द स्त्री लिंग हो तो ? तब क्रिया पहले शब्द के लिंग के अनुसार अनु्सरण करेगी ]

         मुझको मौज-ए-नफ़स देती है पैग़ाम-ए-अजल

        लब उसी मौज़-ए-नफ़स से है नवा-पैरा तेरा ।  -

                                            --इक़बाल

मौज़= स्त्रीलिंग

नफ़स=पुल्लिंग

क्रिया मौज़ के अनुसार --देती है-[स्त्रीलिंग]


चमन से रोता हुआ मौसम-ए-बहार गया

शबाब सैर को आया था, सोगवार गया ।    

                                            -इक़बाल

मौसम = पुल्लिंग

बहार =  स्त्रीलिंग

क्रिया -मौसम- के अनुसार --रोता हुआ गया -।


शम्मअ-ए-मज़ार थी ,न कोई सोगवार था

तुम जिस पर रो रहे थे ये किसका मज़ार था।

                                        -बेख़ुद देहलवी-

शम्मअ’ = स्त्रीलिंग

मज़ार    = पुल्लिंग

क्रिया --शम्मअ’ के अनुसार --थी।]

{[ ऐसे ही आप बहुत से उदाहरण खोज सकते हैं} 

और आप स्वत: चेक कर सकते हैं

 उर्दू में कुछ शब्द ऐसे है जो दोनॊ लिंग में  प्रयोग होते है जैसे-चर्चा --सोच 

आप जो क्रिया लगाना चाहें } जैसे -आप की सोच/ आप का सोच

उनकी चर्चा/ उनका चर्चा --शब भर रहा चर्चा तेरा --


हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम 

वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता 

                        -अकबर इलाहाबादी-

आप लोगों से अनुरोध है कि अगर कहीं ग़लत बयानी हो गई हो तो निशानदिही फ़र्मा दें कि मैं आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सकूं~।

सादर

-आनन्द.पाठक