किस्त 108 : बह्र 21---121---121--12 पर एक चर्चा
क्रमांक 107 से आगे-----
पिछली क़िस्त में बह्र-ए-मुतक़ारिब से निकली एक मुज़ाहिफ़ बह्र
A = 21---121---121---122 पर चर्चा की थी और तख़्नीक़ के अमल से प्राप्त होने वाले अन्य औज़ान की भी चर्चा की थी जिसमे एक वज़न
22---22---22---22 भी था और यह बह्र-ए-मीर नहीं है
साथ ही इसके
A//A =21---121---121---122 // 21---121---121---122 और तख़्नीक़ के अमल से प्राप्त होने वाले अन्य औज़ान की भी चर्चा की थी
जिसमे एक वज़न
22---22---22---22 // 22---22--22---22 भी था। और इनमें से कोई भी वज़न बह्र-ए-मीर नहीं है।
------
आज हम बह्र-ए-मुतक़ारिब से ही प्राप्त होने वाली दूसरी मुज़ाहिफ़ बह्र -B-
B = 21---121---121---12 की चर्चा करेंगे । देखते हैं -यह बह्र कैसे बनती है ?
आप इस बह्र को 122---122---122---122 को अवश्य पहचानते होंगे। हाँ वही बह्र-ए-मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम। आप सही हैं।
अब इसके अर्कान पर कुछ ज़िहाफ़ --सरम---क़ब्ज़---हज़्फ़ ---लगा कर देखते है, क्या होता है ।
122 + सरम = असरम 21
122 + क़ब्ज़ = मक़्बूज़ 121
122 + हज़्फ़ = महज़ूफ़ 12
तो 122---122--122--122 की मुज़ाहिफ़ शकल हो जाएगी
यानी
B = 21----121----121---12
[ बह्र-ए-मुतक़ारिब असरम मक़्बूज़ मक़्बूज़ महज़ूफ़ ]
और इस बह्र पर भी पहले की तरह तख़नीक़ का अमल हो सकता है और कई मुतबादिल औज़ान बरामद किए जा सकते हैं।[ आप चाहें तो खुद
कर के मुतमईन हो सकते हैं कि कितने ऐसे कितने मुतबादिल औज़ान बरामद हो सकते है।
जिसमे एक वज़न 22---22---22----2 का भी बरामद होगा । मगर यह बह्र-ए-मीर नहीं होगा।
अच्छा, अरूज़ के कायदे के मुताबिक इस बहर के भी मुज़ाइफ़ शकल [ दो गुनी शकल ] की जा सकती है । यानी
B //B = 21---121---121---12 // 21--121--121---12- और इस पर भी तख़्नीक़ का अमल किया जा सकता है और कई मुतबादिल औज़ान बरामद हो सकते है
जिसमें से एक वज़न
22--22--22--2 // 22--22--22--2 भी होगा मगर वह भी बह्र-ए-मीर नहीं होगा।
ऐसी बह्रों में मिसरों को Fexibility तो बहुत मिलती है मगर एक Constraint भी होता है । इस Constraint की चर्चा बह्र-ए-मीर की जब चर्चा करेंगे तो तब करेंगे।
ऐसी बहरो की Analysis मूल बह्र -A- और -B- से करेंगे तो तक़्तीअ’ करने में /समझने में सुविधा होगी।
जब आप 22--22--22--22 या 22--22--22--2 से करेंगे तो उलझन पैदा होगी और यह putting the Horse before the Cart वाली स्थिति होगी।
आप बह्र -A- और बह्र -B- याद कर रख लें -। बह्र-ए-मीर की चर्चा में इन दोनों बह्रों की ज़रूरत पड़ेगी जो मीर की बह्र समझने में आसानी पैदा करेगी ।
अगली क़िस्त में अब बह्र-ए-मीर की चर्चा करेंगे---
[नोट -आप लोगों से अनुरोध है कि अगर कहीं कुछ ग़लत बयानी हो गई हो तो निशानदिही ज़रूर फ़र्माएँ कि मैं आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सकूं~।
सादर
-आनन्द.पाठक-
No comments:
Post a Comment