उर्दू बह्र पर एक बातचीत :क़िस्त 120 : 1212--212--122--1212--212-122 ? बह्र कौन सी?
1212---212--122---1212--212--122
ग़ज़ल के किसी मंच पर एक मित्र ने यह वज़न लिखा और इस बह्र पर एक तरही मिसरा भी दिया
वज़न के साथ साथ उन्होने इस बह्र का नाम भी लिखा था--
बह्र-ए-रजज़ मख़्बून मरफ़ूअ’ मुखल्लअ’
और सपोर्ट में कुछ फ़िल्मी गाने का मुखड़ा भी ।
--हज़ार बातें कहे ज़माना मेरी वफ़ा पे यक़ीन रखना
--नसीब में जिसके जो लिखा था, वो तेरी महफ़िल में काम आया
--तुम्ही हो माता पिता तुम्हीं हो तुम्ही हो बंधु सखा तुम्हीं हो
[ आजकल मंचों पर बह्र और ग़ज़ल सिखाने का यह भी एक तरीक़ा नया निकला है]
इस पर हमारे कुछ अन्य मित्रों ने अपने अपने हिसाब से इस वज़न का मुखतलिफ़ combination ,permutations से
अन्य वज़न क्रम भी निकाला और बताया ।
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मित्रों का आदेश हुआ कि इस बह्र और वज़न पर मैं भी कुछ अपनी राय रखूँ--
[अ] 1212---212---122---1212---212---122 = मात्रा भार 32
इसकी एक शकल यूँ भी हो सकती है
[ब] 121--22/121--22/ 121--22/ 121-22 = मात्रा भार 32
इसकी एक शक्ल यूँ भी हो सकती है
[स] 12122----12122----12122---12122 = मात्रा भार 32
प्रश्न यह कि कौन सी शकल जियादे सही?
बह्र[ब] और बह्र[स] की चर्चा पहले भी कर चुका हूँ -मेरे ब्लाग ’उर्दू बह्र पर एक बातचीत’ पर मिल जाएगी।
तीनों बहर अरूज़ के क़ायदे के मुताबिक़ ही हासिल हुए है। अत: तीनों बह्र मान्य है।
[अ] का वज़न सही है बस नाम में थोड़ी कमी रह गई है
मेरे हिसाब से इसका नाम होना चाहिए था -" बह्र-ए-रजज़ मुसद्दस मख़्बून मर्फ़ूअ’ मुखल्लअ’ मुज़ाइफ़
और दिखाना इसे इस तरह था 1212--212--122-// 1212---212---122
यह बह्र बहुत प्रचलन में नहीं है मगर वज़ूद में है।
पहले यह देखते हैं कि यह बह्र [अ] बनती कैसे है --
इस बह्र को तो आप पहचानते ही होंगे-
2212---2212---2212-- [ बह्र-ए-रजज़ मुसद्दस सालिम]
पहले मक़ाम [सद्र का मुक़ाम] 2212 पर ख़ब्न का ज़िहाफ़ लगा कर देखते हैं--
2212+ ख़ब्न = मख़्बून 1212 [ खब्न एक आम ज़िहाफ़ है जो शे’र के किसी मुक़ाम पर आ सकता है।
दूसरे मुक़ाम [ ह्रस्व का मुक़ाम ] पर रफ़अ’ का ज़िहाफ़ लगा कर देखते हैं-
2212+ रफ़अ’ = मरफ़ूअ’ 212 [ रफ़अ’ भी एक आम ज़िहाफ़ है जो शे’र के किसी मुक़ाम पर आ सकता है ।
तीसरे मुक़ाम पर [ अरूज़] के मुक़ाम पर ख़लअ’ का ज़िहाफ़ लगा कर देखते हैं
2212+ ख़लअ’ = मुखल्लअ 122’ [ ख़लअ’ एक ख़ास ज़िहाफ़ है जो शे’र के अरूज़/जर्ब के मुक़ाम पर ही आ सकता है जो यहाँ आया भी है।
इन ज़िहाफ़ात के अमल से
2212---2212---2212 इस बह्र की मुज़ाहिफ़ शकल हो जाएगी
1212--212--122 और नाम होगा -बह्र-ए-रजज़ मुसद्दस मख़्बून मरफ़ूअ’ मुखल्लअ’
अब अगर इस बहर को दो-गुना [ मुज़ाइफ़] कर दें तो ?
1212--212--122 // 1212--212--122 और नाम होगा --बह्र-ए-रजज़ मुसद्दस मख़्बून मरफ़ूअ’ मुखल्लअ’मुज़ाइफ़
ऊपर मित्र से पूरा नाम लिखने में ज़रा कोताही हो गई होगी। ख़ैर
यह भी एक मान्य बह्र है जो अरूज़ के क़वायद-ओ-क़वानीन [ क़ायदे क़ानून ] से ही बने हैं।
अब इसी बह्र की दूसरी शकल पर आते हैं--
[ब] यह शकल बहुत ही मानूस है और काफ़ॊ प्रचलन में है। इस बह्र पर मैने विस्तार से इसी ब्लाग में कहीं लिखा हूँ ।
इस बह्र में पुराने शोअ’रा ने काफी ग़ज़लें कहीं हैं।
121--22/ 121-22/121-22/121--22
और इसका नाम होगा --बह्र-ए-मुक़्तज़िब मुसम्मन मख़्बून मरफ़ूअ’, मख्बून मरफ़ूअ’ मुसक्किन मुज़ाइफ़
कुछ लोग इसे बह्र-ए-मुतक़ारिब के अन्दर रखते हैं --जो मेरे हिसाब से ग़लत है।
[स] 12122--12122--12122--12122 ये अर्कान 8-हर्फ़ी वज़न पर बने है --जो क्लासिकल अरूज़ से मुख्तलिफ़ हैं
इसका नाम होगा--बह्र-ए-ज़मील मुसम्मन सालिम
इस बह्र पर भी मैने विस्तार से इसी ब्लाग में कहीं लिखा हूँ ।
यह भी अरूज़ के क़ायदे से ही बना है --मगर इतना प्रचलन में न आ सका।
हाँ अगर कोई इस बह्र में शायरी करना चाहे तो मनाही भी नहीं
मरजी आप की।
जहाँ तक मेरी व्यक्तिगत पसंद है तो मैं बह्र[ब] यानी 121--22/121--22/121--22/121-22 का पैरवी करता हूँ।
यह सवाल तो कुछ ऐसे ही हो गया जैसे
[क] राम नरायन छोले वाले
[ख] रामनरायन छोले वाले
[ग] राम नर आयन छोलेवाले
और भी शकल हो सकती है--यह आप पर निर्भर करता है कि आप कैसे बुलाएँगे-मनाही तो नहीं-मरजी आप की।
मैं तो वैसे ही बुलाऊँगा जैसे दुनिया बुलाती है--बाक़ी लोग बुलाते हैं।
[ नोट- : इस मंच के असातिज़ा से दस्तबस्ता गुज़ारिश है कि अगर कुछ ग़लत बयानी हो गई हो तो निशानदिही ज़रूर फ़रमाए जिससे यह हक़ीर खुद को दुरुस्त कर सके]
सादर
-आनन्द.पाठक-