Monday, June 16, 2025

उर्दू बह्र पर एक बातचीत :क़िस्त 121: यह 2121---2212---2121---2212 कौन सी बह्र है?

 

उर्दू बह्र पर एक बातचीत :क़िस्त  121: यह 2121---2212---2121---2212 कौन सी बह्र है?


किसी मंच पर मेरे एक शायर मित्र ने एक सवाल किया  -

2121---2212----2121---2212 क्या यह कोई बह्र है या हो सकती है ?

यह आलेख इसी संदर्भ में लिखा गया है और यह लेख उनके लिए लिखा गया है जो उर्दू बह्र से, अरूज़ से ज़ौक़-ओ-शौक़ फ़रमाते हैं।


वैसे तो मात्र वज़न विन्यास देख कर यह बह्र कौन सी है तुरन्त तो नहीं बतलाया सा सकता है जबतक कि वह कोई बहुत ही लोकप्रिय प्रचलित, मारूफ़ और मानूस बह्र न हो।

कारण कि बह्रों की संख्या[ सालिम, मुरक्क़ब, मज़ाहिफ़,  मुसद्दस मुसम्मन आदि सब मिला कर] 250--300-से ज़ियादा ही होगी और सबको याद रखना संभव भी नहीं और ज़रूरी भी नहीं। 

कारण कोई शायर इन तमाम बह्रों में शायरी करता भी नहीं -।-वह तो बस 15-20 अपनी पंसददीदा बह्रों में ही शायरी करता है। 

बह्र का प्रचलन में होना या न होना अलग बात है और बह्र का वज़ूद में होना अलग बात है ।अरूज़ की किसी क़िताब में इन तमाम बह्रों का उल्लेख करना उसकी तफ़सील करना मुमकिन भी नहीं और ज़रूरी भी नहीं। अरूज़ सिर्फ़ क़ाइदा कानून रूल्स बताती है ज़िहाफ़ात की बात करती है और वह सभी बह्रें मान्य हो सकती है जो अरूज़ की ख़िलाफ़वर्जी न करती हो। अगर कोई शायर [फ़नी तौर से ही सही] इन अप्रचलित बह्रों में या कम प्रचलित बह्रों में शायरी करना चाहे तो कर सकता है। मनाही नहीं। वह श्रोताओं में कितना स्वीकार्य होगा यह अलग बात है। ख़ैर।

  तो मेरे मित्र ने ऊपर वाली ्बह्र का कोई हिंट नहीं दिया , कोई Clue नहीं दिया कि यह बह्र  किस खानदान से belong करती है--तो मैने अपनी समझ से इस पर कुछ प्रकाश डालने की कोशिश की है । असातिज़ा और गुणीजन से दस्तबस्ता गुज़ारिश है कि  बताएँ कि मैं कहाँ तह सही हूँ या ग़लत हूँ।

अब मूल विषय पर आते है।

-a-    -b- 

  एक मुरक़्कब बह्र है --बह्र-ए-मुक़्तज़िब -जिसका बुनियादी अर्कान होता है- 2221--2212--[ मफ़ऊलातु--मुसतफ़इलुन]

और इसकी मुसम्मन शकल होगी--

-a--         -b---             -a---    -b--

[ क]     2221---     2212-       --2221---2212

          मफ़ऊलातु--मुसतफ़इलुन--मफ़ऊलातु--मुसतफ़इलुन


[ नोट-- आप को कुछ याद आ रहा है कि यह- 2221--रुक्न कौन सी है ? जी हाँ आप सही है यह एक सालिम रुक्न है जिसे -मफ़ऊलातु- कहते है -मगर इससे कोई सालिम बह्र नहीं बनती और यह सालिम रुक्न --मुरक़्कब बह्र में ही इस्तेमाल होती है जैसे यहाँ । और इसी रुक्न के नाम से इस बह्र का नाम रखा गया--बह्र-ए-मुक़्तज़िब--एक मुरक़्कब बह्र। ख़ैर।

अच्छा। एक ज़िहाफ़ होता है-तय्यी--यह एक आम ज़िहाफ़ है जो शे’र के किसी मुक़ाम पर लाया जा सकता है [ सदर पर--हस्व पर भी]। इसे - 2221- पर लगाते हैं देखते हैं क्या होता है:-

--a----                         -a'-

2221 + तय्यी  = मुत्तवी  2121

अगर इसे मुसम्मन वाली शकल में लगा दे तो ?

-a'-----b---------a' -----  b'

2121--2212---2121---2212 
 और यही सवाल भी था मित्रवर का। 

जी यह एक मान्य बह्र हो सकती है जो अरूज़ के क़ायदे से बनी है और कहीं कोई ख़िलाफ़वर्जी भी नहीं है। यह अलग बात है कि बह्र-ए-मुक्तज़िब में  अन्य लोकप्रिय प्रचलित मानूस बह्र वैसे ही मौज़ूद हैं।


अच्छा । तो इसका नाम?

बहुत आसान -- बह्र-ए-मुक्तज़िब मुसम्मन मुत्तवी सालिम मुत्तवी सालिम --

सालिम बोले तो? यहाँ --2212-- अपने सालिम शकल में प्रयोग हुआ है और जहाँ जहाँ हुआ है वहाँ वहाँ लिख दिया ।


[ नोट- : इस मंच के असातिज़ा से दस्तबस्ता गुज़ारिश है कि अगर कुछ ग़लत बयानी हो गई हो तो निशानदिही ज़रूर फ़रमाए जिससे यह हक़ीर खुद को दुरुस्त कर सके ।

सादर


-आनन्द.पाठक-

8800927181


Tuesday, May 6, 2025

उर्दू बह्र पर एक बातचीत :क़िस्त 120 : 1212--212--122--1212--212-122 ? बह्र कौन सी?

 उर्दू बह्र पर एक बातचीत :क़िस्त 120  : 1212--212--122--1212--212-122 ? बह्र कौन सी?

1212---212--122---1212--212--122

ग़ज़ल के किसी मंच पर एक मित्र ने यह वज़न लिखा और इस बह्र पर एक तरही मिसरा भी दिया

 वज़न के साथ साथ  उन्होने इस बह्र का नाम भी लिखा था--

बह्र-ए-रजज़ मख़्बून मरफ़ूअ’ मुखल्लअ’

 और सपोर्ट में कुछ फ़िल्मी गाने का मुखड़ा भी ।

--हज़ार बातें कहे ज़माना मेरी वफ़ा पे यक़ीन रखना

--नसीब में जिसके जो लिखा था, वो तेरी महफ़िल में काम आया

--तुम्ही हो माता पिता तुम्हीं हो तुम्ही हो बंधु सखा तुम्हीं हो

[ आजकल मंचों पर बह्र और ग़ज़ल सिखाने का यह भी एक तरीक़ा नया निकला है]


इस पर हमारे कुछ अन्य मित्रों ने अपने अपने हिसाब से इस वज़न का मुखतलिफ़ combination ,permutations से

अन्य वज़न क्रम भी निकाला और बताया ।

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मित्रों का आदेश हुआ कि इस बह्र और वज़न  पर मैं भी कुछ अपनी राय रखूँ--


[अ]  1212---212---122---1212---212---122 = मात्रा भार 32


इसकी एक शकल यूँ भी हो सकती है

[ब]  121--22/121--22/ 121--22/ 121-22         = मात्रा भार 32


इसकी एक शक्ल यूँ भी हो सकती है 

[स]  12122----12122----12122---12122        = मात्रा भार 32


प्रश्न यह कि कौन सी शकल जियादे सही?

बह्र[ब] और बह्र[स] की चर्चा पहले भी कर चुका हूँ -मेरे ब्लाग ’उर्दू बह्र पर एक बातचीत’ पर मिल जाएगी।

तीनों बहर अरूज़ के क़ायदे के मुताबिक़ ही हासिल हुए है। अत: तीनों बह्र मान्य है।

[अ]  का वज़न सही है बस नाम में थोड़ी कमी रह गई है

मेरे हिसाब से इसका नाम होना चाहिए था -" बह्र-ए-रजज़ मुसद्दस मख़्बून मर्फ़ूअ’ मुखल्लअ’ मुज़ाइफ़ 

         और दिखाना इसे इस तरह था 1212--212--122-// 1212---212---122

यह बह्र बहुत प्रचलन में नहीं है मगर वज़ूद में है।

पहले यह देखते हैं कि यह बह्र [अ] बनती कैसे है --

इस बह्र को तो आप पहचानते ही होंगे-

        2212---2212---2212-- [ बह्र-ए-रजज़ मुसद्दस सालिम]

   पहले मक़ाम [सद्र का मुक़ाम] 2212 पर ख़ब्न का ज़िहाफ़ लगा कर देखते हैं--

2212+ ख़ब्न = मख़्बून 1212 [ खब्न एक आम ज़िहाफ़ है जो शे’र के किसी मुक़ाम पर आ सकता है।

 

  दूसरे मुक़ाम [ ह्रस्व का मुक़ाम ] पर रफ़अ’ का ज़िहाफ़ लगा कर देखते  हैं-

2212+ रफ़अ’ = मरफ़ूअ’ 212 [ रफ़अ’ भी एक आम ज़िहाफ़ है जो शे’र के किसी मुक़ाम पर आ सकता है ।


  तीसरे मुक़ाम पर [ अरूज़] के मुक़ाम पर ख़लअ’ का ज़िहाफ़ लगा कर देखते हैं

2212+ ख़लअ’ = मुखल्लअ 122’ [ ख़लअ’ एक ख़ास ज़िहाफ़ है जो शे’र के अरूज़/जर्ब के मुक़ाम पर ही आ सकता है जो यहाँ आया भी है।

इन ज़िहाफ़ात के अमल से 

2212---2212---2212  इस बह्र की मुज़ाहिफ़ शकल हो जाएगी

  1212--212--122 और नाम होगा -बह्र-ए-रजज़ मुसद्दस मख़्बून मरफ़ूअ’ मुखल्लअ’

अब अगर इस बहर को दो-गुना [ मुज़ाइफ़] कर दें तो ?

1212--212--122 // 1212--212--122 और नाम होगा --बह्र-ए-रजज़ मुसद्दस मख़्बून मरफ़ूअ’ मुखल्लअ’मुज़ाइफ़

ऊपर  मित्र से पूरा नाम लिखने में ज़रा कोताही हो गई होगी। ख़ैर

यह भी एक मान्य बह्र है जो अरूज़ के क़वायद-ओ-क़वानीन [ क़ायदे क़ानून ] से ही बने हैं।

अब इसी बह्र की दूसरी शकल पर आते हैं--

[ब]   यह शकल बहुत ही मानूस है और काफ़ॊ प्रचलन में है। इस बह्र पर मैने विस्तार से इसी ब्लाग में कहीं लिखा हूँ ।

इस बह्र में पुराने शोअ’रा ने काफी ग़ज़लें कहीं  हैं।

       121--22/ 121-22/121-22/121--22

 और इसका नाम होगा --बह्र-ए-मुक़्तज़िब मुसम्मन मख़्बून मरफ़ूअ’, मख्बून मरफ़ूअ’ मुसक्किन मुज़ाइफ़

कुछ लोग इसे बह्र-ए-मुतक़ारिब के अन्दर रखते हैं --जो मेरे हिसाब से ग़लत है।


[स]   12122--12122--12122--12122 ये अर्कान 8-हर्फ़ी वज़न पर बने है --जो क्लासिकल अरूज़ से मुख्तलिफ़ हैं

       इसका नाम होगा--बह्र-ए-ज़मील मुसम्मन सालिम

इस बह्र पर भी मैने विस्तार से इसी ब्लाग में कहीं लिखा हूँ ।

      यह भी अरूज़ के क़ायदे से ही बना है --मगर इतना प्रचलन में न आ सका।


  हाँ अगर कोई इस बह्र में शायरी करना चाहे तो मनाही भी नहीं

मरजी आप की।

जहाँ तक मेरी व्यक्तिगत पसंद है तो मैं  बह्र[ब] यानी 121--22/121--22/121--22/121-22 का पैरवी करता हूँ।


यह सवाल तो कुछ ऐसे ही हो गया जैसे

[क] राम नरायन छोले वाले

[ख] रामनरायन छोले वाले

[ग]     राम नर आयन छोलेवाले

और भी शकल हो सकती है--यह आप पर निर्भर करता है कि आप कैसे बुलाएँगे-मनाही तो नहीं-मरजी आप की।

मैं तो वैसे ही बुलाऊँगा जैसे दुनिया बुलाती है--बाक़ी लोग बुलाते हैं। 


[ नोट- : इस मंच के असातिज़ा से दस्तबस्ता गुज़ारिश है कि अगर कुछ ग़लत बयानी हो गई हो तो निशानदिही ज़रूर फ़रमाए जिससे यह हक़ीर खुद को दुरुस्त कर सके]

सादर

-आनन्द.पाठक-