क़िस्त [122] : 212---1212----1212---22 यह कौन सी बह्र है ?
मेरे एक मित्र ने यह सवाल किया कि 212---1212--1212---22 क्या कोई बह्र हो सकती है
अगर हाँ तो यह कौन सी बह्र है।
कारण कि मेरे मित्र से एक मतला सरजद [ निसृत] हुआ । उन्होने उसकी तक़्तीअ’ भी की और वज़न भी निकाला। मतला -तक्तीअ’-वज़न तीनों सही था --मगर उन्हें यह वज़न किसी प्रचलित बहर का नहीं लगा या नहीं मिला -सो उन्होंने यह सवाल किया।
मित्र को वैसे उत्तर तो दे दिया । इस मंच के मेरे अन्य मित्र भी उस उत्तर से लाभान्वित [ मुस्तफ़ीद] हो सके मज़ीद [ अतिरिक्त] मालूमात हासिल कर सकें
यह लेख उसी संदर्भ में लिखा गया है। साथ ही उन मित्रों के लिए भी जो अरूज़ आशना है, अरूज़ से दिलचस्पी रखते हैं जो अरूज़-ओ-बह्र से ज़ौक़-ओ-शौक़ फ़र्माते है।
अरूज़ की किताबों में सभी मुमकिनात बह्र की विवेचना तो नहीं की जा सकती। अरूज़ बस प्रचलित बह्रों की विवेचना करती है । हाँ वह क़ायदे क़ानून नियम ज़रूर बताती है और आप चाहे तो उन्हीं उसूलों का उपयोग कर स्वादानुसार आप बह्र बना सकते है शर्त यह कि अरूज़ के क़ायदे क़ानून की ख़िलाफ़वर्ज़ी न हो । ्गोया अरूज़ आप को Ingradients बता देती है receipe
आप बना लें । हाँ अगर आप की receipe स्वादिष्ट हुई श्रोताओं को भा गई तो एक दिन प्रचलन में भी जाएगी। खैर।
अब मूल विषय 212---1212---1212---22--- पर आते है।
अच्छा यह बह्र तो आप जानते भी होंगे और पहचानते भी होंगे
-सदर----हस्व----हस्व-----अरूज./ज़र्ब
[A] 2212--- 2212-- -2212----2212
मुसतफ़इलुन--मुसतफ़इलुन--मुसतफ़इलुन--मुसतफ़इलुन
हाँ जी आप बिलकुल सही हैं । यह बह्र-ए-रजज़ मुसम्मन सालिम ही है\
अब इस पर कुछ ज़िहाफ़ लगाते है देखते हैं क्या होता है ?
सद्र 2212 + रफ़’अ = मरफ़ूअ’ 212 [ फ़ाइलुन]
2212 + खब्न = मख़्बून 1212 [ मफ़ा इलुन ]
2212 + हज़ज़ = अह्ज़ 22 [ फ़ेलुन ]
[ नोट : ख़याल रहे यहाँ -हज़ज़ -एक ज़िहाफ़ है जिसका मुज़ाहिफ़ नाम -अहज़--या कहीं कहीं इसे -महज़ूज़- भी कहते है ।
हज़ज़ --और -हज़ज - से confuse न होइएगा } हज़ज़ --एक ज़िहाफ़ का नाम है इसके दोनो -ज - पर नुक़्ता है जब कि -हज़ज --एक बह्र का नाम है
जिसके आख़िरी -ज - पर नुक़्ता नहीं है] ख़ैर
अब अगर यही स्ब ज़िहाफ़ क्रम से [A] पर लगाते जाएँ तो क्या बरामद होगा?
[B] 212---1212---1212--22 = और यही सवाल भी था मेरे मित्र का।
तो इस -B- बह्र का नाम क्या होगा ? बहुत आसान ।
बह्र-ए-रजज़ मुसम्मन मरफ़ूअ’ मख़्बून मख़्बून अहज़ /[महज़ूज़ ]
माना कि यह बहुत प्रचलित बह्र नहीं है मगर बह्र तो है जो अरूज़ के उसूलों के बिना ख़िलाफ़वर्जी किए हुए बनी है । आप इसमे शायरी करना चाहें तो कर सकते है कोई मनाही तो नहीं ।
[ नोट- : इस मंच के असातिज़ा से दस्तबस्ता गुज़ारिश है कि अगर कुछ ग़लत बयानी हो गई हो तो निशानदिही ज़रूर फ़रमाए जिससे यह हक़ीर खुद को दुरुस्त कर सके ।
सादर
-आनन्द पाठक - 880092 7181
-आनन्द.पाठक-
8800927181
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