Monday, June 1, 2020

उर्दू बह्र पर एक बातचीत " क़िस्त 62 [ सबसे छोटी बह्र-पर एक चर्चा ]

क़िस्त 62 : सबसे छोटी बह्र पर एक चर्चा

"छोटी बह्र में एक ग़ज़ल पेश-ए-ख़िदमत है"- ऐसा आप ने ऐसा कई बार सुना होगा या पढ़ा होगा । 

प्रश्न यह कि कौन सी बह्र ? छोटी बह्र नाम की कोई बह्र  होती है  क्या ? या कोई बड़ी बह्र भी होती है  ?
अगर किसी की दो बेटियाँ  हों और कहें कि छोटी बेटी  अच्छा गाती है तो बात साफ़ है, वह बेटी जो बड़ी नहीं है ।
मगर जिनकी 5-6 बेटियाँ हो तो ? छोटी बेटी अच्छा गाती है । तो कौन सी छोटी बेटी  ? छोटी बेटी से भी कोई छोटी हो सकती है --उससे भी कोई छोटी हो सकती है और उससे भी कोई---
और अन्त में सबसे छोटी भी --।ख़ैर 
दौर-ए-हाज़िर में शायरी में  19-बहरें प्रचलन में हैं । तो इसमें छोटी बहर कौन सी होगी ?
 अरूज़ में बह्र का वर्गीकरण छोटी, बड़ी बह्र या मझली बह्र के आधार पर नहीं ,बल्कि अन्य आधार पर किया गया है ।
या तो बह्रें 
[1] सालिम होंगी  या [2] मुरक़्कब होंगी या  [3] मुज़ाहिफ़  ब
या  फिर
[1]  मुरब्ब: बह्र होगी या [2] मुसद्दस बह्र होगी या [3] मुसम्मन बह्र होगी [4] या इन सब की मुज़ाइफ़ [ दो-गुनी की हुई ] बह्र होंगी।या मुज़ाहिफ़ [ ज़िहाफ़ात लगी बह्रें होंगी
 छोटी बह्र का ज़िक्र फिर भी नही आया अरूज़ में ।
[ नोट - हो सकता है, बहुत से लोग इन अरबी नामों  से या परिभाषाओं से  वाक़िफ़ न  हों। ये सब अरबी के शब्द हैं और परिभाषित है। उनकी सुविधा के लिए संक्षेप में लिख देता हूँ कि याददाश्त बनी रहे।
सालिम बह्र-- वह बह्र जिसमें अर्कान अपने सालिम शक्ल में इस्तेमाल हों
मुरक़्कब बह्र-- वह बह्र जो दो या दो से ज़्यादे सालिम अर्कान से मिल कर बने हों
मुज़ाहिफ़ बह्र--वह बह्र जिसके एक रुक्न पर या सभी अर्कान पर "ज़िहाफ़’ लगे हों।
मुरब्ब:  -- वह शे’र जिसमें 4-अर्कान इस्तेमाल हुए हों [ यानी एक मिसरा में 2- रुक्न]--इसी शब्द से ’रुबाई’ बनी है --4-लाइन वाली रचना।
मुसद्दस -- वह शे’र जिसमें 6-अर्कान इस्तेमाल हुए हों [ यानी एक मिसरा में  3- रुक्न]
मुसम्मन-- वह शे’र जिसमें 8- अर्कान इस्तेमाल हुए हों [ यानी एक मिसरा में 4- रुक्न ]
मुज़ाइफ़ - वह शे;र जिसमे अपनी मूल शकल [ मुरब्ब: ,मुसद्दस.मुसम्मन ] का दो-गुना अर्कान हों । जैसे मुरब्ब: मुज़ाइफ़ -में 8-अर्कान और मुसम्मन मुज़ाइफ़ में 16- अर्कान इस्तेमाल होते हैं।
यह सब आप जानते हैं।
 सवाल यह कि जब शे’र में मुरब्ब: सबसे छोटी इकाई है -यानी एक मिसरा में 2-रुक्न तो क्या 1- मिसरा में 1- रुक्न से भी ग़ज़ल कही जा सकती है ?
जैसे -एक ख़ुद साख़्ता कलाम पेश कर रहा हूँ -पेश-ए-ख़िदमत आप सब की ज़ेर-ए-नज़र--
[ ख़ुद साख़्ता = यानी वह शे’र या ग़ज़ल जो समझाने के लिए तुरत-फ़ुरत बना दी गई हो । ऐसे कलाम में शे’रियत/ग़ज़लियत/तग़ज़्ज़ुल  हो भी सकती है और नहीं भी हो सकती ]
1222
वो आते हैं
वो जाते हैं
नहीं वादा
निभाते हैं
बहुत हम को
सताते हैं

---
---- 
तो क्या इसे हम 1- रुक्नी मिसरा वाली ग़ज़ल कह सकते है ?अगर हाँ ,तो क्यों ? ? अगर नहीं ,तो क्यों नहीं। भाई, इसमें भी लय है वज़न है आहंग है रदीफ़ है क़ाफ़िया है ,प्रवाह भी है कुछ कुछ राबता भी है ।
 क्या कमी है इसमें। हा हा हा ।
अगर कोई नाम हो सकता है तो मेरे ख़याल से -बह्र-ए- हज़ज वाहिद सालिम - हो सकता है।आप भी कुछ नाम बता सकते  हैं।अच्छा छोडिए। नाम में क्या रखा है ।
जी । आप ने बिलकुल सही पकड़ा । यह ग़ज़ल नहीं हो सकती ।
[ यही बात मैने मैने एक मंच पर एक  महिला सदस्य के उनकी ऐसी रचना पर टिप्पणी कर दी थी कि महोदया यह ग़ज़ल नहीं है - तो वह और उनके तथाकथित ’उस्ताद’ दोनों ने मिल कर उस मंच से धकिया दिया तो  मैं  सीधे ’मिर्ज़ा ग़ालिब 
इन्स्टीच्यूट " में आ कर गिरा । और फिर---
फिर वही अपराध मैं हर बार करता हूँ 
ग़ज़ल का आशना हूँ ,ग़ज़ल से प्यार करता हूँ 
तो क्या ऊपर वाले कलाम को  ग़ज़ल कह सकते हैं? 
नहीं कह सकते। कारण--
1- पहले तो क्लासिकल अरूज़ कि किताबों में ऐसी कोई इस्तलाह [ परिभाषा ] नहीं है
2- एक-रुक्नी मिसरा में ’ सदर/इब्तिदा या अरूज़/जर्ब ’ -कहाँ से मिलेगा
3- जब ’सदर/इब्तिदा या अरूज़/जर्ब-हस्व ’ मिसरा में होगा ही नहीं --तो ज़िहाफ़ कहाँ लगाएंगे ? ज़िहाफ़ात की डिजाइन ही ऐसे की गई है कि रुक्न के इन्हीं मुक़ामात पर लगते है और 1- रुक्नी मिसरा इन मुक़ामात से महरूम है।
 तो क्या ऊपर लिखा हुआ कलाम --ग़ज़ल नहीं है ?
है। बिलकुल है । बस उसे आप ऐसे दिखा दें तो--- 
 122 -  2
वो आते-- है
वो जाते-- हैं
नहीं वा  दा
निभाते-- हैं
बहुत हम को
सताते -- हैं
अब यह ग़ज़ल कही जा सकती है 
 --कारण? कारण कि 
क़ाफ़िया -अलिफ़ का [-आते ] है 
रदीफ़ ----है
मिसरा में सदर/इब्तिदा भी है --122 है उस मुकाम पर। बहर-ए-मुतक़ारिब का सालिम रुक्न [ फ़ऊलुन ] है 
अरूज़ और ज़र्ब भी  है --उस मुकाम पर -2- है । 122 का मुज़ाहिफ़ रुक्न अबतर [2] भी है 
तो इस बह्र का नाम भी होगा -- बह्र-ए-मुतक़ारिब मुरब्ब: अबतर - कह सकते है।
तो क्या हम इसी "छोटी बहर " कह सकते हैं ?
मगर सवाल वही का वहीं रह गया __ कि छोटी बह्र कौन सी बह्र होती है ? इस हिसाब से क्या कोई बड़ी बह्र [ तवील बह्र} भी होती है ?
19- बह्रों में एक बह्र का नाम ’तवील’ तो है --बस नाम ही नाम है । उसमे "तवालत"[ लम्बाई ] तो कहीं नहीं दिखती । जैसे और बह्र वैसे बहर-ए-तवील।
तो क्या छोटी बह्र--एक Nararative है या  Perception है ? छोटी बह्र एक absolute entity है या  Relative entity ? आज हम इन्हीं सब बातॊ पर विचार करेंगे। 
देखते हैं सबसे छोटी बह्र क्या हो सकती है ?
---छोटी बह्र किसे कहेंगे।
  पिछली किस्त में हम "छोटी बह्र" की तलाश कर रहे थे। तलाश जारी है-
पिछली किस्त में --एक ग़ज़ल उदाहरण के तौर पर लिखी थी जिसकी बह्र थी --122-2 यानी कुल वज़न = 7।
 क्या यह  "छोटी बह्र" कही जा सकती है ? क्या इस से भी कम मात्रा भार की कोई बह्र मुमकिन है ?देखते हैं  ।
एक बह्र है 112-2 [-बह्र-ए-मुतदारिक मुरब्ब : मख़्बून महज़ूज़]   यानी कुल मात्रा भार 6- । यक़ीनन पहले वाली बह्र से 1-मात्रा  कम ।
शायद यह सब से" छोटी बह्र’ हो  । 
प्रश्न फिर वही --क्या इससे भी कोई छोटी बह्र मुमकिन है ?  देखते हैं ।
अच्छा । 
आप इस बह्र को  पहचानते हैं ? 21--121--121--12 
 [यानी  बह्र-ए-मुतक़ारिब असरम मक़बूज़ मक़्बूज़ महज़ूफ़] 
 आप ने इसे मीर की बह्र में देखा होगा।
अब इसमे से "हस्व" वाले मुक़ाम के अर्कान यानी second & third place के अर्कान [ मापनी ]  [ -121--121- ] उड़ा दीजिए। तो क्या बचेगा ? 
21--12  बचेगा  यानी =6 मात्रा वज़न 
[--- बह्र-ए-मुतक़ारिब असरम महज़ूफ़ --]
तो क्या इसे हम छोटी बह्र कह सकते हैं ?
अब इतनी छोटी बह्र में ग़ज़ल कहना आप का हुनर माना जाएगा।गागर में सागर भरना माना जायेगा। और यह हुनर आप में हैं।
हालाँकि 21-12 वज़न तख़्नीक़ की अमल से 22-2 में परिवर्तित हो जायेगा यानी मात्रा  भार फिर वही =6
हो सकता है कि सबसे छोटी बह्र यह हो ।
निष्कर्ष :    सबसे "छोटी बह्र" ? 
[क] 122-2 =6
[ख]  112-2=6
[ग]   21-12= 6
[घ]   22-2 = 6
में से ही कोई एक हो सकता है --कुल मात्रा योग 6 ही आया । शकल भले ही अलग अलग हो।नाम भले ही अलग अलग हो ।
तो क्या इससे भी कम वज़न -5 मात्रा भार की कोई बह्र हो सकती  है ?मुमकिन है ? शायद नहीं।
कारण कि तब एक ही सूरत होगी कि  ऊपर के सभी बह्र के मिसरा के  अन्त मे - 2- के बजाय -1- [ मुतहर्रिक ] हो--। 
और आप जानते है कि किसी मिसरा के अन्त में कोई मुतहर्रिक हर्फ़ नहीं आता।
पाठकों से एवं मंच के अन्य सदस्यों से अनुरोध है कि अगर इससे भी कम मात्रा [वज़न] में कोई बह्र संभव  हो तो ज़रूर बताइएगा  जिससे मंच के  अन्य मित्र भी लाभान्वित हो सकें।
 अत: हम कह सकते है --एक ग़ज़ल  अमुक बह्र पेश कर रहा हूँ- -- -। मेरे ख़याल से --इतना ही काफी होगा । [ छोटी बह्र लिखने की ज़रूरत नहीं }
सामान्यतया छोटी बह्र के नाम पर --
2122---1212--22- [ बह्र-ए-ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मक़्बून महज़ूफ़ ] में हमारे मित्र कोई  ग़ज़ल पेश कर देते हैं।
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है ?-[ग़ालिब ] - किसी किताब में इसे छोटी बह्र से नहीं नवाज़ा गया है } कहते भी कैसे? इस ग़ज़ल का मयार जो इतना "ऊँचा" है ।
शायद एक कारण यह हो सकता है कि ज़्यादातर शायर -अपनी ज़्यादातर  ग़ज़ल -मुसम्मन- या मुसद्दस में ही पेश करते हैं ।
्यक़ीनन - मुसद्दस बह्र -- मुसम्मन बह्र की अपेक्षा छोटी ही समझी जायेगी । 
मगर यही बह्र  [ बह्र--ए-ख़फ़ीफ़ मुसद्दस ] ही क्यों? अगर मुसद्दस बह्र ही छोटी बहर का पैमाना है तो  अरूज़ में  3- बह्र और भी हैं  जो अपनी मुसद्दस शकल में इस्तेमाल होती हैं ।
  वो क्यों नहीं ?
-- बह्र-ए-जदीद
--बह्र-ए-क़रीब
--बह्र-ए-मुशाकिल
या अन्य बह्रें जो मुसद्दस शकल में भी इस्तेमाल होती है। जैसे
--122----122----122
---212---212---212
या --1222-1222--1222 ऐसे ही और भी ।
तो क्या ये सब भी छोटी बहर में शुमार हो सकती है ? या मुरब्ब: बह्रों को छॊटी बह्र माना जाए। तो छोटी बह्र  क्या मात्र एक PERCEPTION है  ?
र ]
-आनन्द.पाठक-
Mb                 8800927181ं
akpathak3107 @ gmail.com
x

No comments:

Post a Comment